Wednesday, January 14, 2009

बड़ी धूप चमकी आँगन में इस गर्मी के मौसम में!

यूँ तो लफ्जों-ख़ास से तेरी ग़ज़ल महकी रही,
आई समझ जितनी मुझे, तेरी बातें अच्छी लगीं,

कुछ कशिश भी दिख रही थी खयाली जज़्बात में ,
पर हकीकत से तेरी , वो मुलाकातें अच्छी लगीं ,

जब ज़िन्दगी की बेबसी पे तिश्नगी का वार हो,
तिस पे उनके बद दुआ की सौगातें अच्छी लगीं !

वो यादें , उन नग्मों की , वो शिकवे, किस्से , अफ़साने,
आयीं रात जो आँसू बन , जाते जाते अच्छी लगीं ......

बड़ी धूप चमकी आँगन में इस गर्मी के मौसम में,
जितना भाप बना था, उसकी बरसातें अच्छी लगीं ...........

4 comments:

ghughutibasuti said...

बढ़िया !
घुघूती बासूती

Vinay said...

बहुत सुन्दर ख़्यालात,

---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम

के सी said...

कविता मुझे पसंद आई।

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

मैं आप से अनुमति लेना चाहता हूँ कि, क्या मैं आप के ब्लॉग की डाइरेक्ट लिंक अपने ब्लॉग पर डाल सक़ता हूँ?
मेरी मंशा यह है कि कविता प्रेमियों तक आप की रचनायें आसानी से पहुँच सकें.