जब मैं एक हाउस वायिफ थी, क्या कूल मेरी लाइफ थी !
पर काल चला चाल, देख मेरी वो हंसी,
मैं नौकरी की टोकरी के जाल मैं फँसी |
हाँ, थी मेरी तमन्ना , मेरा भी व्हाइट कोल्लर होगा,
होगी मेरी एक पहचान और जेब में डॉलर होगा ,
पर डॉलर आया बाद में, पहले जीवन ही कट गया ,
मेर बच्चों का बचपन , मेरे कैलंडर से हट गया !
एक एक कर कटते गए, वो लाड प्यार वो हंसी खेल,
अब तो हेलो कहने को भी , पतिदेव करते हैं मेल,
मैं दिन भर करती काम, रात भर उनकी मीटिंग चलती है,
जो खाना टाइम से नहीं बना, तो बोलो किसकी गलती है ?
मुझे यही गिला था, की जॉब बड़ी मुश्किल से मिला था,
(मैंने इनसे कहा )-
जो ज़रा सहारा दे दोगे तो क्यातुम्हारा जायेगा,
आखिर डॉलर अपने घर ही तो आएगा...
तिस पर ये बोले - जान , माना तुम मेरी लाइफ हो,
पर क्या पूरे संसार मैं तुम अकेली वर्किंग वायिफ हो?
ये जो काम खाना बनाना है, बिलकुल ही जनाना है,
कोई मर्दों का काम हो तो कहो, वर्ना खाना बनाओ और खुश रहो,
देखो जेन्नी को, सिंगल ही दो बच्चे पालती है
कितनी बखूबी जॉब, फॅमिली और फिगर भी संभालती है !
देसी लड़की माँ बनते ही जाने क्यों ढल जाती है,
माँ के साथ औरत का जज्बा नहीं संभाल वो पाती है,
मैं क्यूँ देखूं जेन्नी को, मुझको लज्जा आती है,
जाने क्यूँ देसी पतियों को गोरी मेम ही भाति है ,
छोडो- छोडो , रोज़ के झगडे , इनसे क्या तुम पाओगे?
कल पेरेंट - टीचर कोफेरेंस है, बच्चों के स्कूल जाओगे?
नहीं नहीं, कल तो मेरी मीटिंग है---
अरे , ये सरासर चीटिंग है ....
सब कामों में कुछ ही तो मर्दों के काम कहलाते हैं,
अब वो भी मेरे सर मंड के, खूब मुझे बहलाते हैं,
अपने मेनेजर और बच्चों के टीचर को तुम ही जता पाओगी,
तुम माँ हो, बच्चों के प्रोब्लेम्स तुम बेहतर बता पाओगी..
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अगले दिन ऑफिस में बहुत काम था, टेप आउट का आखरी मकाम था,
सूली पर मेरा सर था, उस पर ले ऑफ का डर था ,
फिर भी गयी स्कूल बचों की रिपोर्ट कार्ड को लाने ,
कौन कहाँ से क्या बोलेगा, क्या होगा , क्या जाने ?
सब टीचर की यह हिदायत , एक वही सरसरी बात,
प्लीज़ बिताएं अधिक वक़्त अपने बच्चों के साथ,
जीवन की भागादौडी में, टाइम ही तो मिस है,
मुझे माफ़ करदो बच्चों, शायद तुम्हारी माँ सेल्फिश है,
मैं धरती से बंधी बंधी , आसमां नहीं हूँ,
और भी रूप हैं मेरे, सिर्फ माँ नहीं हूँ,
करती हूँ पूरी कोशिश, तुम्हें कमी ना आए,
रहे ख़ुशी दिल में , आँखों में नमी न आये,
पर भूलूँ मैं खुद को, ऐसा हार्ट नहीं है,
और सब कुछ कर दूं, इतन भी मम्मी स्मार्ट नहीं है,
लेकिन बच्चों कसो कमर, हमको मंजिल पानी है,
होगी उसकी जीत की जिसकी हिम्मत हिन्दुस्तानी है ,
आओ मिलके करें कुछ ऐसा, भारत को हमपे गर्व हो,
हर रात दिवाली हो अपनी, हर दिन होली का पर्व हो ......
आओ इसकी विडियो यहाँ देख सकते हैं -
http://www.youtube.com/watch?v=tgp13h9P2HI&feature=channel_पेज
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7 comments:
आपने तो पूरी की पूरी जिंदगी सामने लाकर रख दी
काव्यमय जीवनवृत पढ़ा और विडियो भी देखा। आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी। Very smart presentation. कहते हैं कि-
तल्ख-ओ-शीरी बेतकल्लुफ जिसको पीना आ गया।
मैकशो पीना तो पीना उसको जीना आ गया।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत खूब!!
सेकेन्ड हॉफ में पूरा मर्म है और,
अंत की पंक्तियाँ वाकई हमारा धर्म है.
अच्छी लगी यथार्थ से जुड़ी रचना, बधाई.
bahut badhiya prastuti .badhai jaari rakhe likhna .
इस यथार्थ परक रचना के लिये बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं.
रामराम.
कविता रोचक है. लेकिन वर्किंग वूमन का दर्द भी बखूबी उभारती है.साधुवाद.
बहुत बढिया.
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