मुस्कानों की कीमत, रिश्तों की व्यापारी सीख गयी,
बाजारों के जैसे, कैसे बदले यारी सीख गयी ...
बड़ा नाज़ था मुझे कभी, के दिल का मोल नहीं होता,
तेरे प्यार में यारा मैं तो दुनियादारी सीख गयी ...
(c)Archana
Muskaanon ki kimat, Rishton ki Vyapaari seekh gayi...
Bazaron ke jaise, kaise badle yaari seekh gayi.....
bada naaz tha mujhe kabhi ki dil ka mol nahin hota....
tere pyar mein yara main to Duniyadaari seekh gayi...
(c)Archana
Wednesday, March 31, 2010
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1 comment:
वाह !
क्या बात कही आपने अर्चना जी...
गजब का सैटायर है...वह भी कविता के रूप में...बिल्कुल यथार्थ...
आलोक साहिल
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