Tuesday, August 25, 2009

पास पड़ोस

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आज सुनाऊं तुम्हें कथा जिसमे राजा रानी है,
परी नहीं , ना हाथी घोडे ऐसी अजब कहानी है,

अमरीका के किसी शहर में पांच पडोसी रहते थे,
साथ मनाते खुशियाँ वो सब मिल के दुःख सुख सहते थे,
हर होली पर रंग, दिवाली रौनक का आभास था,
इसी मुहल्ले में उन सब का घर बहुत ही पास था,

हर बात बहुत ही आम होती, हर पार्टी सुबह से शाम होती,

फिर शाम से होती रात..... कितनी लम्बी होती बात,

बच्चों का अलग ही जोश होता , किसे अपने पराये का होश होता,
हर कोई लगता अपना था , सच था या कोई सपना था ,

बिन पूछे , बिन फ़ोन किये, जिनके घर हम जा पायें,
वक़्त पड़े तो दूध-टमाटर-दही उधारी ला पायें ,
हर आफत में देता है जो बढ़के अपना कन्धा,
किस्मत वाले पायें ऐसा पास पड़ोस का बंदा,

फिर जैसे खुदा का उदास मन हुआ,
और अमरीका में डिप्रेसन हुआ...

इस आंधी के आगे किसी का बूता नहीं था ,
अफरा तफरी से मेरा मुहल्ला भी अछूता नहीं था ,

कोई नए घर , नए स्कूल गए...... फिर शायद हमको भूल गए ....

जो किसी का देश प्रेम जागा, तो वह सपरिवार अपनी माटी की और भागा,

एक एक कर सब अलविदा कह गए ,
अब पांच में से बस हम दो रह गए....

सो उनका भी कल यहाँ से ट्रान्सफर हो गया,
और हमारा हँसता खेलता पड़ोस जैसे सो गया...

अब पहचाने से चेहरे हैं , पैर जाने ये सब कौन हैं?
कहते हेलो हेलो हैं, पर दिल से सारे मौन हैं |

सामने का आँगन जिसपर गुडिया खेला करती थी,
पूछेगी "मैं जाऊं ?" पर मम्मी से डरती थी,
मेरे बच्चे, उनके घर , बिन बोले भागे जाते थे,
आधे दिन तो वो भोजन उनके ही घर खाते थे,

बिन तुम सब के, सचमुच, सबकुछ, कितना फीका फीका है,
लोग कहें परदेस जिसे , क्या ये ही वो अमरीका है?

भारत हो या अमरीका, हमने तो बस ये सीखा ,
चाहे कितने गुण या दोष रहे,
अपने लगे, जहाँ अपना पास पड़ोस रहे......

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Saturday, August 15, 2009

आजादी

आप इस कविता की विडियो यहाँ देख सकते हैं -
http://www.youtube.com/watch?v=tsCVGHCQ0lI

देखो
ये बस्ती ये हँसते चेहरे,
कोई बंदिश कोई पहरे,
हो मुबारक हिन्दोस्तान को आजादी का सिला,
जब जवानों ने जान गवांई , हंस के गोली सीने पे खायी ,
उनकी कुर्बानी के ही दम से हम को ये दिन मिला,
वादा करो की सब ऊंचा रखोगे अब भारत का झंडा,
देखो शान हिमालय का पड़ जाए ठंडा,

अब हमको लड़ना है अब के हालातों से रखना है भारत का नाम ,
शक्ति से भक्ति से मुक्ति हो पापों की , आओ करें हम वो काम,
आए यहाँ हो तो डॉलर के पीछे ही भागो तुम सुबह--शाम,
बातों सखी को तुम खुशियों के मोटी, रखना हँसी के पयाम ,
रोती है दुनिया हँसाके दिखाओ , बच्चों को संस्कारें सिखाओ,
सारी ही दुनिया को अपना समझ कर करना सबका भला,
अपने घर को मन्दिर बनाओ, मदिरा सिगरेट इसमे लाओ,
जैसे चलोगे तुम अपनी चालें, बच्चा वैसा चला,
बच्चों को हर दिन पार्क लेके जाना उनका बचपन खिलेगा ,
बीवी को वीकेंड में बहार खिलाना , प्यार दुगुना मिलेगा,



दिया खुदा ने तुम्हे है ये किस्मत, आके यहाँ हो बसे,
खोना मिट्टीसे रिश्ता वो अपना, पश्चिम तुम्हें दसे ,
अपने खजाने से छोटी अट्ठानी गर दे दो तुम दान में,
मिल जाए तो कोई बच्चे को अवसर, बढ़ जाए वो ज्ञान में,

माँ के कर्जे को कुछ तो चुकाओ,
पुण्य कमाओ , टैक्स भी बचाओ,
इतनी दूरी पे बैठे हैं हम सब , कर पायें और क्या?
आज़ादी का तिरंगा सजाओ, सभ्यता के नगाडे बजाओ,
आज मिलकर इस अनगन में बनाएं भारत नया,

हो मुबारक सबको आज, आजादी का जलसा,
देश महका रहे मेरा हरदम एक कमल सा.........