Wednesday, January 14, 2009

बड़ी धूप चमकी आँगन में इस गर्मी के मौसम में!

यूँ तो लफ्जों-ख़ास से तेरी ग़ज़ल महकी रही,
आई समझ जितनी मुझे, तेरी बातें अच्छी लगीं,

कुछ कशिश भी दिख रही थी खयाली जज़्बात में ,
पर हकीकत से तेरी , वो मुलाकातें अच्छी लगीं ,

जब ज़िन्दगी की बेबसी पे तिश्नगी का वार हो,
तिस पे उनके बद दुआ की सौगातें अच्छी लगीं !

वो यादें , उन नग्मों की , वो शिकवे, किस्से , अफ़साने,
आयीं रात जो आँसू बन , जाते जाते अच्छी लगीं ......

बड़ी धूप चमकी आँगन में इस गर्मी के मौसम में,
जितना भाप बना था, उसकी बरसातें अच्छी लगीं ...........

Wednesday, January 7, 2009

जो टूट के भी टूट नहीं पाता है !

जो टूट के भी टूट नहीं पाता है,
जो काटो यूँ लगे और ही बढ़ जाता है ,
जो पूछे कोई शम्मा की रात कैसी थी?
परवाना क्यूँ हँसते हुए जल जाता है....

हर बात में एक याद तेरी आती है ,
हर गीत पर एक तार सा चल जाता है ,
वो प्यार भरा तार तेरी ही शहर से होगा,
सपना बने दिल में यूँ ही पल जाता है ......

मालूम है मुझको, तेरी हालत भी तो मेरी सी है ,
क्या सोच ख़ुद ब ख़ुद , ख्याल ही टल जाता है ,
तेरा भला हो, दे दुआ, अब दूर से ही दिल,
फिर आज के ढाँचे में ये ढल जाता है ......

- - अर्चना

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