Saturday, November 14, 2015

Yadon me sunkar baten...

Friday, January 13, 2012

शादी - The magic and the Logic of marriage !

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Marriage is one of the most successful inventions,

Its a public announcement of strictly private intentions...
But why marriage? Just clarifying my doubt,
To live with a person you love,
or to live with some one you cannot live without...

पन्ना इतिहास खोली, बड़े गर्व से मैं बोली,
शादी ही समाज की है ग्रेट डिस्कवरी ,
छुपे मनोकामना की पब्लिक अनऊंस्मेंट
इस-से बेटर क्या है ? सुनले ओ बावरी,
सोचूँ मैं की शादी क्या है? अनिवार्य क्यूं है भला?
रस्मों रिवाजों को नोचने से मैं डरी,
रहना है संग जिस-से लगाया दिन या की ,
रहना है संग जिसके बिना हूँ मैं मरी !

Unison of two souls, dreams fleeting, goes public with a grand meeting,
But stupid are the reports that states-the highest rate of fraud is in spouse cheating,
After every 'I-Do' moment, why law of gravity falls?
Why most unison futures in breaks, Cheats or stalls?

दो दिलों का मेल है ये, सपनों का खेल है ये,
आन बान शान पार्टियाँ शादी की सुहाती है,
[ पर शायद ] झूठे हैं रिपोर्ट जो धाखा धडी के रिशर्चों में ,
प्रथम अवार्ड शादी में धोखे को बताती हैं,
भामर के पड़ते, भ्रमर क्यूँ भ्रमित हुआ,
शादी जैसे प्रेम भ्रम मन से हटाती है,
ससारे ब्याह, भरे आह, कोई टूटा, कोई छूटा,
कभी थामे पानी जैसे कहलाती है ..

Marriage -Has been- Has to - Will be, A Must Do in every tense,
Yes, its a social marriage of convenience...

Maybe our historians wise, should revise, with open eyes,
With times changing, life style ranging,
With options and choices, and independent voices,
They should mar Our Times as a Frame,
Cause we change dthe rule of the game...

When relations are not blocked by gender,
and churches ceased playing bartender,

An open world, with freedon true, emotions warm as lamp,
And when relations come from heart, they seldom need a stamp.


नया वक़्त आ गया है, हमपे यूं छा गया है,
आज थामे रीतियों से आओ मिलके लड़ें,
बड़े बड़े पोथी लिए खड़े हैं जो ठेके दार,
उनपे नवीन सोच की परत हम गढ़ें,
सोच में ले खुलापन, और परिवर्तन,
एक नए पहचान की तरफ हम बढ़ें ,
सोच है स्वतंत्र जहाँ, रिश्ता मन का वहां,
फिर वहां शादी की ज़रुरत ही न पड़े...

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जब मुस्काई बिना वजह मैं... बेमतलब रोना आया..

आज पकड़ में जाने कैसे दिल का एक कोना आया,

जब मुस्काई बिना वजह मैं... बेमतलब रोना आया..

वाह रे ऊपरवाले... मैं सदके तेरी यारी ,

भूलूँ मैं तुझको....तेरी हरदम है तैय्यारी...

जो तू चाहे, पैरों पे मैं खुद चलवाऊं आरी,

पर भूलो देव, कभी मेरी आएगी बारी....

भूखी थी मैं रोटी की...... और हाथ मेरे सोना आया..

जब मुस्काई बिना वजह मैं... बेमतलब रोना आया..

'मैं'-'मैं' के इस जमघट में, मिले कोई तो 'हम' जैसा,

भरे ज़िन्दगी, हर दिल में जो, पाक दुआ के दम जैसा,

अल्फाजों से परे जो सुन ले ... देखे, जो दिखता नहीं,

नज़रें क्या, रूहों तक पहुंचे, रहमत के मौसम जैसा...

देर तलक थी चौराहे पे, हरजाई वो ना आया..

तब मुस्काई बिना वजह मैं, बेमतलब रोना आया...

आज पकड़ में जाने कैसे दिल का एक कोना आया,

जब मुस्काई बिना वजह मैं... बेमतलब रोना आया..

Tuesday, November 1, 2011

मैं भाव के समुद्र हेतु शब्द ढूंढती हूँ

एक अंतहीन गर्भ का प्रारब्ध ढूँढती हूँ,
इस भाव के समुद्र हेतु शब्द ढूँढती हूँ ....

तोल -मोल के तो प्रेम बाध्य नहीं होता,
सोच से ही कार्य कभी साध्य नहीं होता,
कुल की रीत मान, जाप-तप करे कोई,
सत्य में, हर देव तो आराध्य नहीं होता,

मंथन है अंतर्मन, मैं निस्तब्ध ढूँढती हूँ,
इस भाव के समुद्र हेतु शब्द ढूँढती हूँ ....

भूमिका परे कलम जब बह पायेगी,
स्वयं से यथार्थ जब ये कह पायेगी,
होगी सच्ची कविता तो उस दिन मित्रों,
तोड़ परिधि व्यूह का जब ये रह पायेगी ...

शक्ति-भक्ति -मुक्ति का मैं अर्थ ढूँढती हूँ,
मैं भाव के समुद्र हेतु शब्द ढूंढती हूँ ....

आपकी,
अर्चना

Wednesday, June 22, 2011

उत्तराखंड / उत्तराँचल

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मेरे देश के माथे का सिरमौर हिमालय धाम है,
और बसा जिस राज्य में, उसका उत्तराखंड नाम है,

राज्य अनूठा, लोग भी अनुपम, अपनापन है फैला,
बारह वर्षों में लगता है जहाँ कुम्भ का मेला,

देव भूमि, पावन धरती, जहाँ सत्य की नींव टिकी थी,
वेद व्यास ने महाभारत की गाथा यहीं लिखी थी,

बिना प्रश्न का उत्तर काशी, हरिद्वार की रोटी,
छोटे चारों धाम यहाँ , नैना देवी चोटी,

जिम कार्बेट का पार्क यहाँ और जन्नत अल्मोड़ा है,
अफलातून है देहरादून और नैनीताल का जोड़ा है,

गंगा मैया और जमुनाजी का जन्म यहीं हुआ है,
सिक्षा में भी आई आई टी रूरकी ने भी गगन छुआ है...

रुद्रप्रयाग है त्याग की आग, जिसकी महिमा प्रचंड है,
रहे गर्व मुझको सदा, ये मेरा उत्तराखंड है ..

इस कविता की विडियो अप यहाँ देख सकते हैं -
http://youtu.be/vbI3XnfYzSs

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Monday, May 2, 2011

रंग कम ...


यशोमती मैया से बोले नंदलाला ,
राधा क्यों गोरी, मैं क्यों काला ?

काहे कान्हा पूछा तुमने मैया से ये सवाल,
तुमरे कारण हम सब साँवलों का हुआ आज ये हाल,

न कहते तो दादी मुझको बचपन में न समझाती ,
के सारी दुनिया को तो बस गोरी चमड़ी है भाती,

बचपन में गोरे होने का राज़ जो टी वि पर टेपा,
जाने कितने फेयर & लवली को मैंने मुंह पर लेपा,

लगा बस दस रुपये में सोल्यूशन सिंपल हुआ,
तो क्या गर चेहरे पर उससे ढेरों पिम्पल हुआ ,
पिम्पलों से न घबराते मैं और लगाऊँ हल्दी,
जाने क्यों गोरा बनने, की मुझको थी जल्दी..

लेकिन अजब चक्कर था, मेरे रंग का फेयर & लवली से टक्कर था,
और मेरा पक्का रंग जीत गया , रंग वैसा ही रहा, फेयर & लवली का मौसम बीत गया...

पढने की खातिर, जब बक्शा लेकर स्कूल गयी,
किताबों की दुनिया में फर्क रंग का भूल गयी,

उम्र के साथ फिर रंगत मेरी राह पड़ी,
जब किसी के साथ मेरी आँख लढी...

याद है मुझको दिन वो न्यारे, संगी साथी प्यारे प्यारे,

जब सब मिलके हम पिकनिक मन रहे थे,
और अपने अपने दिलरुबा के लिए सब गाने गा रहे थे,

जब नंबर मेरे महबूब का आया, और उसने गाने के लिए आसन जमाया,
अब कौन सा गाना होगा फिट, उसके भेजे मैं कुछ नहीं समाया,

उसने सर पैर बहुत फोरी थी, पर क्या करें, हर गीत मैं हेरोइन गोरी थी...

औत अंत तक मेरे लिए उसे गीत नहीं मिला,
पर उस मासूम से मुझे नहीं है गिला,

गिला है तो बोलीवुड से जो ऐसे गीत बनाते हैं,
जो प्रेमी हृदय सिर्फ एक गोरी के लिए ही गा पाते हैं,

दुनिया में जब आधी जनता रंग रंगीली है,
तो फिर शायरों की कलम उनके लिए क्यों ढीली है ?

जो मेरा भैया काला, तो टॉल, डार्क और हैण्डसम है,
और जो मैं काली, तो लोग कहें की रंग कम है ...

एक दिन जो आये ये बहार से, मैंने पूछा पति से प्यार से,
एए जी, क्या मैं तुम्हारे ख्वाबों की मूरत हूँ, क्या मैं खूबसूरत हूँ?
बड़े नाज़ से, एक अलग अंदाज़ से, हर शक को दिया काट,
कहा इन्होने, यू आर ब्यूटीफुल, एट हार्ट !

मैंने घर बसाया आकर अमरीका,
जहाँ लोगों की सोच का अलग है तरीका,

याद है घर मैं एक रात, अपने परिवार के साथ,
मैंने पूछा बच्चों से, खुदा के बन्दे सच्चों से,

मॉम तुम्हारी फाएर नहीं है, जिसकी तुमको केयर नहीं है,
पर दुनिया के अलग ही ढंग हैं, और लोग तो देखते रंग हैं,

बोली बेटी - if people do you bad, you also do them,
if they discriminate on color, just sue them ! [मान हानि का दावा करो..]

सोच रही मैं आज ज़रा के किस किस को सू मैं करूँ?
दादी को जाकर पकडूँ या बोलीवुड को मैं धरूँ?

पापा से मैंने पूछा था बचपन में एक बार,
रंग को लेकर लोग क्यों कहता हैं बातें चार,

और जो बेटी बनाना था मुझे , तो आपके मन में क्यों नहीं आया,
पापा, आपने मुझे गोरा क्यों नहीं बनाया ? - 2

कहा पिता ने बड़े प्यार से , बेटी ,मेरी मैया,
काली शक्ति, काली दुर्गा, काले कृष्ण कन्हैया |

काला रंग कला समाये , काला ही काल को पाए,
कल भी आता काला में ही, काला ही आला कहलाये..

काला हीरा दुगुना महंगा, हीरों का ये दिल बन जाए,
और कहीं ये एक जगह हो , तो नज़र बचाऊ तिल बन जाए !

हाँ हृदय से प्रार्थना उठती है की हर रंग का अपना दम हो,
न कोई रंग ज्यादा और न कोई रंग कम हो ...

Wednesday, December 29, 2010

मेरी कुट्टी तुमसे कान्हा
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मैने माना , रे कान्हा, दुनिया पल का आना- जाना,
पर है ठाना, दूँगी ताना, अब फिर जो तूने माना,
तूने राधा के संग बाँधा ,हो आधा पर प्रेम को साधा ,
बोल, ये जो प्यार है... केवल देवों का अधिकार है ?
जिसका रूप, ना आकार है ...
निर्विघ्न चीत्कार है ...
बिन अस्त्र का प्रहार है..
समय की मार .. हर बार की हार ... मात्र हाहाकार.....
क्या
केवल देवों का अधिकार है?
किन्तु अब मेरी बारी है, अब पूरी ही तैयारी है ...
टूट गयी है शक्ति, मेरी अर्चना नहीं हारी है...

सुन ले.....जब तक प्राप्त नहीं अब प्यार है,
जिस
पर मेरा अधिकार है !
तेरी पूजा नहीं स्वीकार है ...

दूँगी ताना, अब है ठाना, जो तू मेरी बात माना,
मेरी कुट्टी तुमसे कान्हा ....