Thursday, May 8, 2008

Naukri ki tokeri - नौकरी की टोकरी

करी करी नौकरी , नौ नौकरी करी ,
मरी मरी मैं मरी, जब भी नौकरी करी ,
दे दे के झूठे वादे , हरजाई मुख मोड़ गई ,
कभी मैंने छोडा उसे ,वो ही कभी छोड़ गई ,
ऊंची ऊंची डिग्रियों का , क्या मैं अब अचार करुँ ?
क्या बनेगा future मेरा, अब इसपे मैं विचार करुँ |

आई जो मैं पढ़ लिख के, BTech MBA कर के,
पहुँची अमरीका , कितने नयन में सपने धर के,
मेरा वो पहले इंटरव्यू , चक्रव्यू की चोटी ,
बिना वर्क परमिट के मैं उल्टे पाँव लौटी ,
मेरा अपराध घोर था, status मेरा H4 था ,

चार साल वनवास मैंने, जैसे तैसे भोगा,
आया जो ग्रीन कार्ड मैं झूमी, अब कुछ होगा ,
मैंने किए सारे तप, तब मिला एक startup,
मैंने कहा पैसे कम है, उसने कहा बस यही गम है ?
अगर तुम में दम है, काम किए जाओ , हम हैं ..


खैर , इरादा नेक था , मेरा वो पहले ब्रेक था,
मैंने की थी पूरी कोशिश, दिन रात एक कर डारी,
अब किस्मत को मैं क्या रोऊँ ,जो पाँव हो गया भारी,

बस, फिर क्या था ? फिर टूटी करीयर की डोरी,
बस गूंजी बच्चों की लोरी ,
दिन- साल- महीने गुज़र गए अब कोई करो उपाय ,
बच्चों के पालन के संग कौन नौकरी की जाए ?

सब R&D कर कर के, ये बात समझ है आई,
टीचर बन ने में ही अब तो होशियारी है भाई ,
बच्चों के ही संग जाना है, उनके ही संग आना,
दो पैसे तो घर में आयेंगे , हमने ख़ुद को ताना ,
पर टीचर बन ने को ,जो हुआ हमारा हाल ,
बज गए बाजा credentials में, लग गए पूरे दो साल ,
फिर मिली नौकरी पक्की , और चली समय की चक्की,

हुए बड़े कुछ बच्चे हाय , software फिर हमें बुलाये ,

बस एक नौकरी के पीछे सब लगा दिया है दम ,
लो outsource का दानव फिर ले आया है मातम ,

तंग गई में अमरीका में .बी.सी.दी (ABCD) बन कर ,
मैं ही आया , मैं ही बैरा , मैं ही कुक और ड्राईवर ,

उन बहनों के लिए ये संदेश मेरे पास है ,
जिनके दिलों में भी परदेस की ही आस है ,

जब आना इस ओर तो माँ या सासु माँ को ले आना ,
देखो बहना, हो पाये तो H4 पर मत आना ,
रखना तुम कंट्रोल अपने फॅमिली के प्लानिंग पर ,
वरना होगा रोना तुमको फूट फूट के धर के सर ,

कविता नहीं है, ये मेरे दिल की एक भडास है ,
पर इन आंसूओं में भी कहीं छुपी एक आस है ,

मैं हूँ नारी हिंद की और वक्त मेरा भी आएगा ,
जो निकल पड़ी मैं सर चढ़ के तो विश्व दंग रह जाएगा ,
तुम गाँठ बाँध लो सारा जग मेरी वाणी दोहराएगा ,
जिस किलकारी ने रोका था , अब वो ही हौसला बढायेगा !

America-अमरीका

मुकुराया देख हमने सोफे कुर्सी मेज़ को ,
भांति भांति के उपकरणों को , नई नवेली सेज को ,
हुए नहीं थे चार महीने भारत को छोडे हुए ,
घर से कोसों दूर , विदेशी सभ्यता ओढे हुए ,
उन दिनों भी मन के अन्दर कैसी वो आशाएं थीं ?
उमंगों की तरंगों की सतरंगी भाषाएँ थीं |

आए यहाँ तो रंगीली ये दुनिया हमको भा गई ,
ज्ञान विज्ञानं की इतनी प्रगति अपने दिल पर छा गई ,
लगे ठूंसने घर मैं अपने सामानों के भर ठेले ,
लगने लगे ठहाकों के मेरे घर पर भी मेले ,

अब तो इस धरती पर , इस हवा में तन रमने लगा ,
देख विदेशी चका-चौंध अपना भी मन जमने लगा ,

हो सकता है , अगली घर की यात्रा मन को भाये ,
पड़े रहें तब भी विदेशी चका-चौंध के ये साए ,

सम्भव हैं जाएँ हम भूल , निज देश की वह बंदगी,
धर्म भूलें कर्म भूलें, नज़र आए बस गन्दगी,

पर दिल के किसी कोने में अब भी एक आस है ,
घर भरा है किंतु मन में कमी का एहसास है ,

नहीं है तो बस नहीं है थपकियों का वो आँचल ,
खाने की मेज़ पे अपनों का वो कोलाहल ,
वो नाचने की धुन की मस्ती, गीतों का मधुर झंकार ,
वो प्यार वो तकरार , बच्चों सो जाओ की वो पुकार

अब तो अपने तेवर की करती है मिजाज़ पुर्सियाँ ,
ये कार ये टीवी ये मेज़ और ये कुर्सियाँ,

उन लोगों के लिए ये संदेश मेरे पास है ,
जिनके दिलों में भी परदेस की ही आस है

जब आना इस ओर तो थोडी माँ की खुशबू ले आना ,
बाँध सको तो गली मुहल्लों की आवाजें ले आना ,
संस्कृति इतनी लाना की आखरी वक्त तक साथ रहे ,
हो पाये तो मुट्ठी भर तुम देश प्रेम भी ले आना ,

मानों मेरी बात तभी तुम्हारा यहाँ दिल खिलेगा ,
क्योंकि इनमें से तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा,
कहीं नहीं मिलेगा , कभी नहीं मिलेगा |

Chaand-Chakor- चाँद चकोर

किसी गुलसितां में चहकती थी हरदम ,
दो आंखों में उसकी महकती थी शबनम ,
सभी फूल पाती उसी पर फ़िदा थे ,
जो गूंजे सदा में उसी की सदा थे |

थी लाडो सभी की चहेती चकोर ,
कूदती भागती थी वो चारों ही ओर,
था मासूम दिल ऐसा , भोली सी सूरत ,
थी उसके लिए ये जहाँ खूबसूरत ,

एक दिन जो नज़र आसमान पर पड़ी ,
चाँद के चेहरे से उसकी आँखें लड़ी,
देखती ही रही कुछ भी बोले वो ,
मुस्कुराये मगर राज़ खोले वो ,

फिर कहा उसने ये बड़े दांव से,
चाँद ला दो मुझे आसमान गाँव से ,
सब हँसे चल रे पगली जिद नहीं ऐसे करते ,
कभी तारों को देखा है ज़मीं पे उतरते,

अगर वो ज़मीं पे सकता नहीं ,
तो में क्यों ख़ुद ही उस जाऊं वहीँ ,
यहीं तो दिखे है , उठाओ नज़र ,
हाथों से चूलूं , जो बढाऊं अगर ,

सब ये बोले जो दीखता है होता नहीं,
रेत के ढेर में पानी सोता नहीं ,
इश्क़ में कौन दुनिया में रोता नहीं ,
जो समझता है सपने पिरोता नहीं....


मानी उडी उड़ चली वो चकोर ,
दोनों पंख खोले वो अम्बर की ओर ,
दिन ही को देखा , रातों को जाना,
गर्मी सर्दी, हवा का ठिकाना ,

जो टूटा बुलंदी से दम आखरी,
तो प्यासी वो आके ज़मीं पे गिरी ,
अपने उजडे पंखों को मींचे हुए
पहुँची प्यासी पोखर साँस खींचे हुए ,

देखा जो पानी में था चाँद एक,
आई जान वापस , दिया मौत फ़ेंक ,
गई वो समझ दुनिया दारी को आज ,
लो तुम भी सुनो उस चकोरी का राज़ ,

जो ख्वाइश करो तुम कभी चाँद की ,
अपने घर में पानी का घडा डालना ,
जो सच्ची हो चाहत झुके आसमां,
हमसफ़र दिल तुम ज़रा बड़ा पालना |

kalaakaar- कलाकार

थे जबसे वो शौक शायराने हमें ,
थी ख्वाइश की दुनिया पहचाने हमें ,
गीतों को मेरे भी दुनिया सुने ,
अंधेरों से उठके उजाले बुने ,

थी वो आस मुझमें जो माने ना हार ,
जो गिर के भी बोले लो फिर एक बार ,
वो बचपना लिए बढ़ चले हम तो आगे ,
जाने कितने ही अरमां थे दिल में ये जागे ,

कोशिशें इतनी जाया हुई ये पूछो ,
चौखट पे सभीके मायूसी ही पायी ,
फिर ख़ुद को मनाया यही सोच कर ,
ज़रा धीरज रखो शुभ घड़ी देगा साईं ,

कोई चाचा या मामा या ताया नहीं ,
खींचने हमको आगे कोई आया नहीं,
ये खुदा की है रहमत कलम बोल उठी ,
क्या कसर इस ज़माने ने ढाया नहीं ....

है गर आग मुझमे कभी तो जलेगी ,
तपस्या मेरी ये कभी तो फलेगी ...

यही गम लिए चले जा रहे थे ,
किसी ने गली में पुकारा हमें ,

मुड के देखा वो चेहरा , बड़ा ही सुनहरा ,
पुछा हमने क्योंजी, क्यों पुकारा हमें ?


तुमको देना था कुछ , यूँ तो कुछ भी नहीं ,
दिल से मेरे एक नन्हा शुक्रिया ,
जब मैं हरा था जग से , था हरसू अँधेरा ,
गीतों ने तेरे था उजाला किया !

बस इतना ही कह चल दिया वो कहीं ,
पर दिल पर मेरे जैसे बिजली गिरी ,
मालूम था होगा इतना असर ,
है कलम में वो दम मेरी बुद्धि फिरि ,

छपे मेरे गीत कागजों पे तो क्या है ?
इंसानी दिलों पर तो पड़ती है छाप ,
अब बेहतर है क्या , ये इंसा या कागज़ ,
चलिए हमको अब ही बताएं ये आप !

Hind-Pak - हिंद-पाक

हिंद-पाक
जब बँटा मेरा था देश कभी ,
थे बड़े उदास ,हैरान सभी |
हर दिल का टुकडा लाख हुआ ,
कुछ हिंद हुआ , कुछ पाक हुआ ...

जिसके हिस्से जो भी आया ,
उसपर था बिछडों का साया,
क्या खूब सियासी शातिर थे ,
मज़हबी दांव में माहिर थे ,
उनको तो सत्ता पाना था ,
और अपनों को लड़वाना था ,

फिर हुआ , हुआ कैसा जूनून ,
क्यों बहा हर गली खून -खून ...
क्यों लाल रंग हर गाँव सना ,
कश्मीर दर्द का तनाव बना ...

सारी दुनिया अफ़सोस कहे ,
दो दुश्मन पास-पड़ोस रहे ,
वे दुश्मन जो भाई थे पर ,
रिश्ता टूटा जब छूटा घर ,


पर कुदरत की देखो माया ,
भूकंप भी ये कहाँ आया ,
दोनों देशों के बीचोंबीच ,
हम जिसे रहे लहू से सींच ,

कुदरत ने है आगाह किया ,
बन्दे ग़लत है राह लिया,
जा सुधर , बना ले रिश्ता फिर ,
ख़ुद जाए नज़रों से गिर ,

हो अच्छा गर फिर एक बार ,
बंधे दो देशों में प्यार ,
और अगर हम बन जाएँ एक,
दिल से सारे शिकवे फ़ेंक ,
तो सोचो कैसा होगा रंग,
कभी जंग हो अपनों के संग ,

कभी शहद बने , कभी नीम बने ,
क्या सही क्रिकेट की टीम बने ,
हों राम वहीँ, रहमान वहीँ ,
हो उनका अपमान कहीं ,

सब पंडित, मुल्ला, पीर बनें ,
हम सबका ही कश्मीर बने ,

गर एक कभी हम बन पायें ,
साड़ी दुनिया पे छा जाएँ ,
बस बात नज़रिए की है एक,
तू कोशिश कर के तो देख !

Pareeksha_ परीक्षा

परीक्षा
( मुशी प्रेमचंद की कहानी 'परीक्षा' पर आधारित )
जब सुजानगढ़ का दीवान उमर से थका चला था ,
सोचा की मैं स्वयं चुनूं , दीवान नया भला सा ,
हुई घोषणा , पूर्ण राज्य में होगा चुनाव दीवान का,
परिचय होगा, सब गुनियों के ,आन -बाण और शान का,

हर कोने से आए सज्जन लेकर अपने रंग ,
सबका अपना अलग रवैया ,अपना अपना ढंग ,
कोई खेल में अव्वल था , कोई सुर में उस्ताद ,
कोई ज्ञान का सागर था कोई गुण से आबाद ,

मुश्किल यूँ था चुन ना उनमें ज्यों पर्वत से जीरा ,
बूढा जौहरी ढूंढ रहा था पर मोती में हीरा !

एक दिवस सब युवा जनों ने सोचा खेलें खेल ,
सम्भव हो जाए उसी से आकांक्षा से मेल,
हुई आरम्भ प्रतियोगिता फिर हार जीत के साए,
अंत में थक हार कर सब अपने घर को आए,

रस्ते में एक बूढा किसान बिनती करता था सबसे ,
गाड़ी उसकी एक दलदल में फंसी हुई थी कबसे ...
रुके कोई क्यों ऐसे पल में थके हुए थे सब ही ,
लगता था आराम मिले सो जायें बस अब ही,
बैठ गया वो बूढा पकड़े अपना सर हाथों में ,
ऐसे में देखा उसको एक लड़के ने बातों में ,
जाना जो उसकी मुश्किल बोला की मैं आता हूँ ,
लगी पाँव में चोट है मेरे साथी को लाता हूँ |

जब कोई आया , वो बोला हंसके तब ,
हम दोनों को ही मिलके करना पड़ेगा अब,
आधी रात गए वो लड़का उस बूढे के साथ ,
खींच रहा था गाड़ी उसकी कसके दोनों हाथ ,
भवन जो पहुँचा सोने को , बीती रात थी सारी,
सब सज्जन निकले थे सुन ने निर्णय की तैयारी..

दौड़ा पहुँचा जो कक्ष में निर्णय होना था तब ही ,
दिल को थामे बैठे लोग आशावादी थे सब ही,
चुना गया वो लड़का जो बैठा सबसे पीछे ,
करने लगे प्रश्न लोग , अपनी मुट्ठी भींचे ,

आया वो बूढा किसान तब, अरे वो ही दीवान है !
बोला उसने कठिन क्षणों में इंसा की पहचान है ...

जिस मानव ने औरों के दुःख को अपना जाना है ,
उसी वीर हृदय को हमने परिषद् में लाना है ,
चाहे कितने गुण हों किसी में , वृथा हैं सारे मान ,
करे जो दीन दुखी और मेहनत का सम्मान !

Idgaah- ईदगाह

ईदगाह

ईदगाह
( मुशी प्रेमचंद की कहानी 'ईदगाह' पर आधारित )


हामिद था एक अच्छा बेटा अपनी माँ का प्यारा ,
बूढी आमना की धुंधली आंखों का तारा ,
गाँव में जब मेला था पाक ईद के मौके पर ,
लगी हुई थी खालिदा , रोटी में चूल्हे चौके पर ,
पोता मेरा खाना खाकर मेले में फिर जायेगा ,
सब बच्चों के जैसे वो भी भर भर खुशियाँ पायेगा ,

होते जो पैसे मुझपे दे देती भर के हाथ ,
लेकिन बस ये तीन पैसे हैं दूँ जो तेरे साथ ,
पैसे वो लेकर के हामिद भागा भर के दम ,
तीन पैसे भी लगे उसको छह लाखों से कम,

सोचा उसने क्या लूँ में, अपने इतने पैसों में ,
लूँ मिठाई या खेल खिलौने , चुनना है ऐसों में ,
फिर देखा एक कोने में एक बन्दा था कुछ सिमटा ,
बेच रहा था चीख चीख कर वो लोहे का चिमटा...

याद गया हामिद को जब रात चूल्हा चलता है ,
बिन चिमटे के हर रोटी पर हाथ माँ का जलता है ,
छ: पैसे का था पर चिमटा सोचा कैसे लूँगा,
बोला भइया तीन का दे दे , ले के माँ को दूँगा ,

बच्चे की जो देखी सूरत बोला चिम्टेवाला ,
ले ले बेटा तीन में तू, जा ईद मनाले आला ,
लौट रहे थे जब घर को सब बच्चे मिल कर बोले ,
अपने सामानों की पुड़िया आओ अब हम खोलें ,

हँसें देख हामिद का चिमटा लेकिन हामिद बोला,
तुमपे तो सब कांच या मिटटी है, टूट पड़े जो डोला ,
मेरे लोहे का चिमटा है , मजबूती का नाम ,
रहे संग ये हरदम मेरे , मदद करे हर काम ,

आई दौडी माँ आँगन तक देखूं हामिद को मेरे ,
क्या खाया मेले में तूने, क्या भाया मन को तेरे ?

खाना खाकर निकला था माँ मैं भूख थी कुछ मुझको ,
पर मेले से एक चिमटा माँ , लाया हूँ मैं तुझको ,
अबकी जब रोटी सेकेगी, तू चिमटे के साथ ,
होगी मुझको बहुत खुशी की जले तेरे हाथ ,
माँ के आँसू रुक सके फिर , पंख लगे थे पाँव में,
आज फ़रिश्ता ईदगाह से आया था ख़ुद गाँव में !

Haar ki jeet - हार की जीत

वतन की मिट्टी से हमने जो विरासत पाई है ,
वही कहानी और सीखें फिर याद किसी को आई हैं ,
कोशिश शुरू हुई है , उस शिक्षा को दोहराने की ,
गाने की , दर्शाने की, जीवन के एक अफ़साने की ,


हार की जीत
(
सुदर्शन जी की कहानी 'हार की जीत' पर आधारित )

एक गाँव में रहता था एक पंडित बाबा भारती ,
नेक खुदा का बन्दा था वो सच्चाई उसे सहारती ,
था बस उसका एक प्यार , घोड़ा उसका सुलतान ,
वो ही उसकी ज़िन्दगी था, वो ही उसका मान,
आधी रोटी अपनी हरदम उसको देता था वो,
बैठ पीठ पर उसके खूब मज़े लेता था वो,

ऐसे ही दिन कट जाते , था किस्मत में कुछ और ,
एक दिन गुज़रा खड़क सिंह , डाकू था वो चोर,
पड़ी निगाह तो खुली रह गई देख सुलतान का रंग,
लग असोचने कैसे ले लूँ इसको अपने संग ,
पुछा उसने बाबा से क्या बेचोगे ये तुम,
देखा बाबा ने उसको बोले हो जाओ गुम..

तब चली एक चाल चोर ने बदला अपना भेष ,
बन बैठा एक भिखमंगा वो करके उलझे केश,
जो देखा उसने बाबा को आते अपने घोडे पे,
लगा कराहने करो मदद , रखे हाथ वो जोड़े पे ,
पूछा बाबा ने भाई क्या दर्द है तेरे पाँव में ,
कहा पहुंचना है बस जल्दी नजदीकी एक गाँव में ,

दिल था बाबा का कोमल बोले छोडूं आजा ,
बैठा चढ़ कर डाकू उसपर जैसे कोई राजा ,

दो पग भी चल पाये थे , बाबा को दिया धक्का उसने ,
घोडे की धर डोर स्वयं ही , अपना रुख किया पक्का उसने ,
समझ चुके थे बाबा अब तो डाकू की वह गन्दी घात,
लेकिन कहा उन्होंने हंसके कहना नहीं कभी ये बात,
साथ छूटा नहीं गम मुझे किंतु होगा कष्ठ बड़ा ,
करे कोई मदद दुखी की, होजो कोई रस्ते में खड़ा ,
जानेंगे जो बन रोगी तुमने लूटा है अब ,
फिर करेगा मदद कोई भी भय में होंगे सब,

मुंह मोड़ कर अपना चल दिए अपने गाँव ,
एक साँस में पहुंचे घर तक, थके उनके पाँव,

क्या देखें ? फिर अपने घर में, था उनका सुलतान खड़ा,
डाकू पर भी उन बातों ने कर डाला था असर बड़ा ,

चूम चूम साथी को बोले चल अब खुशियाँ जोडेंगे,
दीन दुखी की मदद से अब लोग मुंह नहीं मोडेंगे !

Shayari- शायरी

शायरी

. 'चाहिए' और 'चाह' का सिरा तुम पूछो ,
की दिल और दिमाग का सिला तुम पूछो ,
जो कह दें की हमने ये दिल से कहा है ,
तो उसकी वजह तुम दिमागों से पूछो !

. ज़िन्दगी को मिला एक सिरा चाहने का,
वो चाह , जो चाहत है एक सिलसिले की,
फहमी में ग़लत तुम आना कभी भी ,
ये उल्फत नहीं है , इंसानी दिले की,
मुहब्बत है एक तस्सवुर से मेरे ,
जो मिलता है ले ले के चेहरे नए ,
कभी तो मिले बाहें खोले वो अपने ,
कभी फिर लगाए वो पहरे नए !

. प्यारा प्यारा प्यार तुम्हारा , प्यारा है इज़हार तुम्हारा ,
दो पल ही , हुआ तो सही , हल्का इक दीदार तुम्हारा ,
तुम आए , तुम यूँ आए , रहा रात झंकार तुम्हारा ,
कुछ तुमने भी दिया हौसला , कुछ दिल गुनाहगार तुम्हारा ....

. अब आया जीने में मज़ा , बूँदें बरसी अश्कों की अभी,
रही रहो पास मेरे, यादें मिलती हैं, जो तुमको देखूं कभी ...

. हँसता है दिल, मुस्कुराती हूँ मैं,
अब हरदम तेरे गीत गाती हूँ मैं,
जो पुकारो मुझे दौडी आती हूँ मैं ,
अब शाम--सेहर गुनगुनाती हूँ मैं ...

. कागज़ पे लिखा था शेरों को तुमने,
या दिल पे मेरे कोई नगमा खुदा था ,
जो आया था मिलने ज़रा वक्त पहले ,
था साया मेरा ही या मुझसे जुदा था ?

.दिल धड़कता तो था पर ऐसे नहीं ,
सांसें चलती तो थी, इस जैसे नहीं ,
किया जादू है कैसा ये तुमने सनम ,
जी थी मैं, हूँ लगती वैसी नहीं !

. गुज़रता है दिन खुमारी में ,
कट ती है रात बेक़रारी में ,
जाने खुदा वक्त कैसा वो होगा ,
रहती हूँ मैं जिसकी तैयारी में !

. कैसा ये गुमाँ हमें है आजकल ,
की रहते हैं दुनिया में लोग आज भी,
हमने मौसम से ज़्यादा दिल देखे बदलते,
हम यहीं हैं, कहते हिं लोग आज भी !

१०. गर वक्त--शिकायत से आन आना था,
तौबा इस से बेहतर बहाना था ?

११. डर है फिर इस्क्ह की सज़ा मिले ,
हर अदा में छुपा कातिलाना ज़हर ,
ज़रा धीरे धड़क मेरे प्यासे दिल,
तुझसे पहले जाएँ ये साँसें ठहर !

१२.शुक्रिया दोस्त गुल--दिल को खिलाया ,
ग़ज़ल से हमारे हमीं को मिलाया ,
मुमकिन था पाना , गम--आशिकाना ,
जाने जहर क्या हमें है पिलाया !

१३. क्या ग़ज़ल, शायरी भी भाये हमें,
अब तो हरसू नज़र तू ही आए हमें,
क्या करें ? तुम कहो, दिल गया हाथ से ,
अब तो देखेंगे , जो दिल दिखाए हमें ....

१४ . ज़िन्दगी में कभी मैं तुमसी बन सकूं,
खुल के रोऊँ , कभी खुल के मुस्का सकूं,
ये दिखावे का चेहरा , अब भाता नहीं,
कैसे फेंकूं मगर मुझको आता नहीं.....

१५. निकल हम पड़े हैं , अपनी ही धुन में आज ,
अब देखें जो भी मंज़र , आए निगाह में,
ख़ुद क्या बताएं , फूल या काँटों का बचपना ,
सब बिछ गए हैं आज किस्मतों की राह में ....

१६ मिल सकते हैं क्या मुझसे , वो मासूमी से कहते हैं ,
कोई पूछे किस हक से , वो दिल में मेरे रहते हैं ?

१७.अभी तो मिले हैं , घड़ी दो घड़ी,
है लाखों ही दिल में क्यों अरमा हैं जागे?
न कहना किसी से हमारी ये बातें ,
ज़माने की हमको नज़र न लगे...

१८ जो आओ कभी तुम मुहल्ले हमारे ,
तो लैब पे मेरा नाम लेना नहीं ,
हैं बैठे सभी टाक में लोग इसके ,
ये मौका ज़माने को देना नहीं,

१९ शुकर है खुदा का , ये मौका मिला ,
कहें तुमसे दिल का हर शिकवा गिला,
इस्क्ह इज़हार हो शायरी के सहारे ,
तुबे घुट ते कई दिलजले गम के मारे !

२०.है ख़बर हमको, तेरी फितरत बड़ी ही सकत है,
दो घड़ी मेरे लिए भी क्या ज़रा सा वक्त है ?



शादी

("चोली के पीछे क्या है" गीत के धुन पर आधारित)

शादी के पीछे
क्या है? शादी के पीछे...
रिश्तों को खींचे क्या है ? रिश्तों को खींचे .....

शादी लड्डू है कैसा? खाए रोये ऐसा, खाके भी रोये वैसा ,
क्या करुँ ?
क्या करुँ........ हाय !

लाखों हैं फंसते इसमे,
लाखों हैं फंसते,
मर मर के हँसते इसमे, मर मर के हँसते,
हुसबंद की एक चले, वाइफ को बजट पले,
उस पर बच्चों के सिलसिले , रामजी, रामजी,

शादी से पहले लड़का मख्खन लगता है,
शादी के बाद वही तो ढक्कन लगता है !
मुहब्बत बंद वो करे, बातें भी चंद वो करे,
बेदिल सम्बन्ध वो करे, रामजी , रामजी ...

शादी से पहले लड़की मुनमुन लगती है,
शादी के बाद वही तो टुनटुन लगती है,
बच्चों में गई डूब वो, लड़ती अब बहुत खूब वो,
चाहत का ले अब वो नाम जी, रामजी,

बीवी और माशूका में बोलो तो अन्तर क्या है?
girl friend attention देती है , wife बस टेंशन
देती है !!!
taken for granted लेती है, क्या करुँ?

बीवी हो कैसी बोलो?
बीवी हो कैसी,
शौहर हो कैसा बोलो?
शौहर हो कैसा ,

बीवी लाखों उडाये, शौहर फिर भी मुस्काये,
बहार खाना खिलाये , रामजी, रामजी ,


शादी शुदा होने का अपना मज़ा है,
दुनिया में सिंगल रहना ख़ुद एक सज़ा है,
हाथों में हाथ वो रहे, दुःख सुख में साथ वो रहे,
जीवन में बात वो रहे, रामजी, रामजी,

जीवन ये पल दो पल है, ये जीवन है पल दो पल,
तेरा है आज मगर होगा तू कल,
शादी से अंश बना ले, अपना भी वंश बना ले,
दे जाओ जग को अपना नाम जी, रामजी,

राबड़ी बगैर लालू किस काम का,
लालू बगैर राबड़ी किस काम की?
ये तो रिश्ता है ऐसा, दिल का साँसों से जैसा,
हमने खुदाई इसके नाम की....

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राखी

भाई बहन का प्यार , जाने सब संसार,
एक दूजे का चाहें भला,
तू सुखी रहे, भइया मेरे,
लगे खुशियों की तुझको दुआ,
जबसे घर छूटा, कहूँ मैं हर बार,
अपना जीवन भर , रहे प्यार .....

सुन बहन मेरी , तू मत रोना,
मैं तेरे पास नहीं , दुखी मत होना,
सरहद पे हूँ, रक्षा करूँ,
सब मिटेंगे गम, जो मिलेंगे हम,
गर जिंदा आया, दुश्मन को मार,
तब तक रहो तेरी राखी उधार.......

अपने बच्चों को हम समझाएं,
कैसे रिश्ते बने, ये सिखलाएँ,
आज इश्क का भूत , सब पे है सवार,
जाने पीढी नई , बस तन का प्यार !
मन के रिश्ते ये मांगें मोल,
अनजाने बाँध जाएँ , राखी के डोर......

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राधा की प्रीत

प्रेमी कन्हैया के चटकीले छैंयाँ से सखियाँ तुम मुझको बचाओ रे,
पकड़े वो बैयाँ से, बोले हम मैया से, भागे तो उसको भगाओ रे,
करता रहता मनमानी,
अबके अपनी भी है मनवानी , रे,

सबको वो छेड़े , बातों में लभेडे, है लढता वो जमुना किनारे हो,
माखन चुराता , गीतों से रिझाता वो गगरी पे कांकरिया मारे हो,
उसकी मुरली का कोई सानी,
सुन के पत्थर भी हो जाए पानी , हो....

यशोदा का लाला, नटखट नंदलाला, सुन राधा के प्रेमों की बानी हो,
छूटे संग तेरा कर ले वचन मेरा, सबरी शरत मैंने मानी हो ,
तू तो है सागर गोकुल का राजा, तेरे मन की मैं बन जाऊं रानी हो,

बोला कन्हैया ने सुन प्रिये राधिके, हृदयों का मिलना है अपना,
इसमे भी शक्ति है, भक्ति है, मुक्ति है, कुंदन का अग्नि में तपना,
जब तक मैं रहूँ हरदम रहेगी, मेरी मुरली राधा की निशानी हो.....

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नया साल

(अरमान मूवी के "समझे" गीत की धुन पर आधारित )

नए साल का तुमसे है कहना,
यूँ ही गाते ही रहना,
तुम दिल से , समझे?
नए साल का तुमसे है कहना, मुस्काते ही रहना,
खुशी से, समझे?
हाँ, अपना भी दिन आएगा , जहाँ हमको दोहराएगा,
हम पर खुशियाँ बरसायेगा,
समझो जो कहती हूँ, नए साल का....

तुम यों, हारे हो क्यों, जो मुश्किल पल था, चला गया,
देखो, वो नया सवेरा, वो नई चुनौती का पल गया,
हाँ, कर लो नई इब्तदा, सुनो ज़िन्दगी की सदा,
हर पल की नई है अदा,
समझो जो कहती हूँ.....

आओ, करें हम वादा, नए मौसम का नया समाँ हो,
मिलके, बढ़ें हम ऐसे, यूँ ही गाते गाते , खुशी जवान हो,
माना अपना रिश्ता नहीं , इंसान हूँ , फ़रिश्ता नहीं ,
फिर भी दोहराऊँ किस्सा वही,
समझो जो कहती हूँ...

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कल समां था जहाँ

(सितम्बर ग्यारह के दर्दनाक हादसे को समर्पित एक गीत )

कल समाँ था जहाँ , अब हवा है वहां,
एक पल में गया , जो सदी में बना,
सिर्फ़ मंज़र नहीं , हौसला खो गया,
खौफ़्फ़ कैसे करुँ मैं बयाँ?

इन सियासी दम पेचोखम में पिसता आज है अमन--वतन ,
कैसे रोकूँ कौमों के झगडे, कैसे बदलून , रंग--चमन ,
चाह कर भी कुछ कर सकूं अब मैं ,
डर है हर शक्श--दिल दरमियाँ...
कल अमन था जहाँ, अब जलन है वहां...

जब कहीं एक गोली चली, एक माँ का दिल रोया,
नज़रें देखे अपनों का रास्ता , जाने किस ने क्या खोया ,
फूल ही फूल थे, जिनके घर में वहां , अब तो है दर्द की दास्तां,
कल चमन था जहाँ, अब चुभन है वहां ......

आओ कह दें हम उस खुदा से, बस करे अब जंगों का खेल,
फिर से आए रिश्तों में नरमी, फिर बुलंद हो कौमों का मेल,
आओ मिल के हम सब करें ये दुआ, फिर कोई जंग--गम आए ना.......


कल समां था जहाँ , अब हवा है वहां.....

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आजादी

देखो ये बस्ती ये हँसते चेहरे,
कोई बंदिश कोई पहरे,
हो मुबारक हिन्दोस्तान को आजादी का सिला,
जब जवानों ने जान गवांई , हंस के गोली सीने पे खायी ,
उनकी कुर्बानी के ही दम से हम को ये दिन मिला,
वादा करो की सब ऊंचा रखोगे अब भारत का झंडा,
देखो शान हिमालय का पड़ जाए ठंडा,

अब हमको लड़ना है अब के हालातों से रखना है भारत का नाम ,
शक्ति से भक्ति से मुक्ति हो पापों की , आओ करें हम वो काम,
आए यहाँ हो तो डॉलर के पीछे ही भागो तुम सुबह--शाम,
बातों सखी को तुम खुशियों के मोटी, रखना हँसी के पयाम ,
रोती है दुनिया हँसाके दिखाओ , बच्चों को संस्कारें सिखाओ,
सारी ही दुनिया को अपना समझ कर करना सबका भला,
अपने घर को मन्दिर बनाओ, मदिरा सिगरेट इसमे लाओ,
जैसे चलोगे तुम अपनी चालें, बच्चा वैसा चला,
बच्चों को हर दिन पार्क लेके जाना उनका बचपन खिलेगा ,
बीवी को वीकेंड में बहार खिलाना , प्यार दुगुना मिलेगा,



दिया खुदा ने तुम्हे है ये किस्मत, आके यहाँ हो बसे,
खोना मिट्टीसे रिश्ता वो अपना, पश्चिम तुम्हें दसे ,
अपने खजाने से छोटी अट्ठानी गर दे दो तुम दान में,
मिल जाए तो कोई बच्चे को अवसर, बढ़ जाए वो ज्ञान में,

माँ के कर्जे को कुछ तो चुकाओ,
पुण्य कमाओ , टैक्स भी बचाओ,
इतनी दूरी पे बैठे हैं हम सब , कर पायें और क्या?
आज़ादी का तिरंगा सजाओ, सभ्यता के नगाडे बजाओ,
आज मिलकर इस अनगन में बनाएं भारत नया,

हो मुबारक सबको आज, आजादी का जलसा,
देश महका रहे मेरा हरदम एक कमल सा.........

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Wednesday, May 7, 2008

दिवाली

उजली शाम, रौनक हैं रातें, अब दिवाली मनाएंगे हम,
पल दो पल हंस लें खुशी से, सारे सपने सजायेंगे हम,

जो तुम सोचो कैसे धूम मचाओगे,
कपड़े जेवर, कितने पटाखे लाओगे,
यादों में रखना तुम उन बेचारों को,
किस्मत से टूटे, तूफां के मारों को,
जिनके लिए, अब मुश्किल है ,
ज़िन्दगी का गुज़ारा सितम.....

और कभी दीपो का रंग भाये जो,
तुमको अपनों की यादें सताए जो,
घर होंगी कैसी खुशियाँ इस मौसम में,
माँ थोड़ा तो रोएगी मेरे गम में ,
मेरे बिना आनगन में शायद , रोशनी तो नहीं होगी कम....

आओ बनें सहारा किसीका गर ख़ुद को सहारा है कम,
मांगें दुआ आज के दिन तो दिल कोई भी रह जाए नम !

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वैलेंटाइन डे

चौदह फरवरी सुबह हुई और बेटी आई मेरी,
मुस्काई और शरमा के उसने यूँ नज़रें फेरी,
समझ गई मैं हुई उसे फिर पैसों की दरकार ,
हाय ज़रूरत पर हो आता है अपनों को प्यार!

पूछा फिर भी मैंने उस से -बच्चे! everything is fine?
वो बोली - look mom ! today is valentine !

सौ बातें आई मन में कह डाली सब एक साथ,
माँ जो कभी कहती थी मुझसे दोहराई वो बात ,

"बच्चे चलना देख भाल के , दुनिया बड़ी फरेब,
रखना मर्यादा घर की, अपनी इज्ज़त, अपनी जेब"

"टाइम से खाना खा लेना, करते रहना फ़ोन "
"come on take it easy, just leave me alone!"

इस से पहले मैं कुछ पूछूं, पैसे लेकर वो चल दी,
आज कल के बच्चों को हरदम रहती है जल्दी,

मैं भागी मेरे अपने अजी सुनते हो के पास,
दौड़ भाग टेंशन चिंता से फूल चुकी थी साँस,

"सुनो, सुनो बेटी के लक्षण , मुझपे तो बिजली टूटी है ,
कहती है वैलेंटाइन है, अभी अंडे से नहीं फूटी है ! "

धीरज से समझाओ मुझको ओ बीवी ऑफ़ माइन,
कैसा है बतंगड़ ये, कैसा ये वैलेंटाइन?

"सुनते थे हम भी कॉलेज में है कुछ ऐसा रोग,
हंगामा सा करते थे, आशिक दीवाने लोग,

हर सुंदरी को लव यू लिखकर कर देते थे साइन,
भूलें चाहे होली दिवाली, पालें वैलेंटाइन"

"हँसी करते हो, मैंने कहा हँसी करते हो?
मेरी तो जान ही जायेगी,
कल जब बेटी घर में बॉय -फ्रेंड लेकर आएगी".....

कहा इन्होने -रोम में बन जाओ रोमन,
करो ज़रा तुम ब्रॉड माईंड, नहीं होगी उलझन,

कितना करुँ में ब्रॉड माईंड , कैसे करुँ में ब्रॉड माईंड मां हूँ न,
हो कोई नुक्सान किसी का चाहूँ न,

आने वाले थे कुछ आँसू आंखों में,
चमक उठा कुछ खिड़की की सलाखों में,
देखा टेबल पर नया कुछ रखा है,
बड़े सुनहरे कागज़ से वो ढक्का है,

खोला कवर जो गिफ्ट का , सब टेंशन हो गए एंड(end),
लिखा था उसपर , "mom , you are my best friend"
शिक्षा उस दिन थी जो पाई, भूल नहीं पाऊँगी मैं,
होगा जब भी culture conflict यही गीत गाऊँगी मैं,
जितना हम अपने बच्चों पर विश्वास करेंगे,
उतना ही उनको दिल से हम पास करेंगे,
बनके उनके ही जैसा आओ प्यार को जोडें ,
ये conservative attitude , ये दकियानूसी छोडें,

दिलों के इस पर्व में आओ खुशियों से मेल करें ,
हर नियर और डियर वन को फ़ोन या ईमेल करें !

मेरी सहेली

ज़िन्दगी भर उस से मेरी होड़ सी लगी रही,
वो पहेली, मेरी सहेली , निज रक्त सी सगी रही ,
बात करके आज उस से , मन लगा उड़ने वहां पर ,
घर द्वार , इस संसार से, हट के बसे दुनिया जहाँ पर ,

जल उठी मेरी मन की नारी , उस चंचला को देख कर ,
स्वयं को उस आकांक्षी से नापते लगता है डर ,
चले तो एक साथ थे , हम दोनों एक चाह में,
उच्च शिखरों के स्वप्न में , अभिलाषा के राह में ,

मेरी सखी, जिसने रखी, जो भी कहा सब कर गई ,
मैं तो जैसे , इतनी जल्दी, इस जीवन से डर गई ,
पच्चीस में ही पचास का एहसास जब होने लगे ,
उमंगें जब कर्तव्य के काँधें पे ही सोने लगे ,
जब स्वप्न से आकर भिडें धरातल की वो सच्चाइयाँ,
तोड़ दे तरंगों को जो संसार की परछाईयाँ,

तो विद्रोह कर उठ ता है मन की क्यों चडी उस डाल पर,
जहाँ पहुँच कर बस नहीं है , स्वयं अपना काल पर ,
जब नचाता है समय इंसान को निज ताल पर ,
देख हंस देता है मानव स्वयं अपने हाल पर ,

कहने लगी मेरी सखी क्या थी तू क्या हो गई ,
क्या तेरे सपनों की वो सारी कलियाँ खो गई ?
बादल, झरने, बरखा, पानी ,
तितली , छतरी , आसमानी ,
क्या तेरे जग जीतने की वो अभिलाषा खो गई ?
तू तो एक छोटे से घर की हो गई ,

उत्तर दिया मुड कर उसे मेरे विवेक ने गर्व से ,
हैं कम नहीं मेरे ये दिन त्यौहार या किसी पर्व से ,
जीता जगत तो क्या जीता , बन गए राजा तो क्या जानें ?
कर सको जीवन रचना , फूँक सको प्राण तो हम मानें !

पाया जो नारी का ये तन वात्सल्य प्रथम कर्तव्य है ,
आज ममता के ही दम से विश्व जनता सभ्य है ,
कर सकें हम गर किसी एक हृदय का शुद्ध विकास ,
तभी रास्ट्र निर्माण बन पायेगा सक्षम अविनाश ,

मत मान लो, घर द्वार मेरे स्वप्न का परित्याग है ,
मेरी आकांक्षा तो बड्नावल की वो आग है ,
कर्तव्य की प्राथमिकता अनुसार नारी ढलती है यहाँ ,
पर आकांक्षाएं तो संग संग चलती है यहाँ ,

पंचम में बृहस्पति अब मेरा गुरु हुआ है ,
अरे देखो ना , जीवन तो अभी शुरू हुआ है !
जो कहा था मैंने ना कर दूँ, अब वही तीर तो साधा है,
सब होगा सिद्ध अब जीवन में, ये मेरा तुमसे वादा है !

सुन मेरे ये वचन मेरी सखी अब मौन है ,
बंधुओं अब ये तो बूझो, वो सखी आख़िर कौन है ?
इस बात को कैसे कहूँ, इसी बात का तो दुःख है ,
वो कोई और नहीं मेरी तस्वीर का ही रुख है ,

रुख वह जो अब तक बचपन के उन ख़्वाबों में बंद है ,
जो उन्मुक्त है , आजाद है , स्वतंत्र है, स्वछन्द है ,
एक रुख ये है जो रखे है पहले जिम्मेदारियों को ,
प्रणाम करते हैं अंत में सब माँओं को सब नारियों को |

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