Tuesday, December 23, 2008

कोई इंडिया से जब आए ...

कोई इंडिया से जब आए तो वो यही सोच कर आए,
कि मैं सपनों के देश में आ तो पाई रे ...

पर आकर इस प्लेस में यूँ लगता है.
डॉलर भी तो पेड़ पे नहीं आते हैं ,
मन तन्हा है, जीवन सूना फिर भी रे,
सुख दुःख में हम किस किस से मिल पाते हैं ?
मंहगा डे केयर है , जीरो पे शेएर है ,
कटे आधी तनखा टैक्स में ,लगता नहीं फेयर है !
बैक होम सब बोलें , तुम लाखों में डोलो,
सच्चाई हम जानें तुम हमको न बोलो !

हाँ ! इंडिया से नई मांग आई रे ....
कोई इंडिया से जब आए..

पर जीवन तो फिर भी चलता रहता है,
हमने यहीं पर हँसना गाना सीखा है,
बिना किसी बैसाखी के ख़ुद ही चलना ,
अब तो अपना देस ही अमरीका है !
उस माँ ने जनम दिया , इस माँ ने पाला है,
तो इस माँ का दर्जा उस माँ से आला है !

ए मेरे वतन के लोगों , ये बात जान लो हाँ !
रखना ऊंचा निज स्वाभिमान , तुम जग में रहो जहाँ ...

पूरब से आई कैसी, पुरवाई रे ....
कोई इंडिया से जब आए...

"कोई जाए तो ले आए, मेरी लाख दुआएं पाये " गीत कि धुन पर आधारित

इसकी विडियो आप यहाँ देख सकते हैं-
http://www.youtube.com/watch?v=yhyindjii

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Saturday, December 20, 2008

नया साल !

नए साल का तुमसे है कहना,
यूँ ही गाते ही रहना,
तुम दिल से , समझे?
नए साल का तुमसे है कहना, मुस्काते ही रहना,
खुशी से, समझे?
हाँ, अपना भी दिन आएगा , जहाँ हमको दोहराएगा,
हम पर खुशियाँ बरसायेगा,
समझो जो कहती हूँ, नए साल का....

तुम यों, हारे हो क्यों, जो मुश्किल पल था, चला गया,
देखो, वो नया सवेरा, वो नई चुनौती का पल गया,
हाँ, कर लो नई इब्तदा, सुनो ज़िन्दगी की सदा,
हर पल की नई है अदा,
समझो जो कहती हूँ.....

आओ, करें हम वादा, नए मौसम का नया समाँ हो,
मिलके, बढ़ें हम ऐसे, यूँ ही गाते गाते , खुशी जवान हो,
माना अपना रिश्ता नहीं , इंसान हूँ , फ़रिश्ता नहीं ,
फिर भी दोहराऊँ किस्सा वही,
समझो जो कहती हूँ...

(अरमान मूवी के "समझे" गीत की धुन पर आधारित )

इसकी विडियो आप इस लिंक पर देख सकते हैं-
http://www.youtube.com/watch?v=kImyvB23HfU

आपकी,
अर्चना

Wednesday, November 5, 2008

मैं और अमरीका !

अमरीका में मैं दस साल से रह रही हूँ | अब ये भी घर सा लगने लगा है | ऐसा नहीं है की भारत को मैं भूली हूँ | आज भी भारत तन मन में बसता है लेकिन जिस देश से मुझे रोटी मिलती है , मेरे बच्चों को शिक्षा मिलती है , जहाँ मेरा परिवार बसता है, और जहाँ आज मैं गर्व से अपने देश और अपनी संस्कृति को represent करती हूँ, उस देश और उस धरती के प्रति भी मेरा कुछ कर्तव्य है | ये रिश्ता मुझे ज़ोर दे रहा है की मैं इसकी अस्मिता और आन के लिए , हमारे और इसके बीच प्यार और विश्वास को बनाए रखने के लिए आवाज़ दूँ | आशा है आप इसे सच्ची भावना से स्वीकार करेंगे-


जिसका खाया नमक, समय है, आज अदा वो हक करें,
अपनी जुबां और ईमां पर , ये जहाँ कभी न शक करे ,

सीखा है मैंने तो बस, वसुधैव कुटुंब को अपनाना,
तभी तो मैंने इस धरती को भी है अपना जाना,

मैं रहती जिस देश में भइया, उसपर सब कुछ वारूँगी,
वो न समझें चाहे अपना, मैं हिम्मत नहीं हारूंगी !

सोच समझ कर दूँगी मत मैं, मेरा चुना जो पायेगा,
रहे मेरा परिवार खुशी से, रामराज तब आएगा ,

भारत से मेरा नाता है , अमरीका भी प्यारा है,
दोनों देशों से ही अब तो जुड़ गया भाग्य हमारा है,

दोनों को ही घर मैं मानूं , आपका क्या ख्याल है ?
भारत है जो मायका मेरा, अमरीका ससुराल है !

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Monday, October 27, 2008

दिवाली

उजली शाम, रौनक हैं रातें, अब दिवाली मनाएंगे हम,
पल दो पल हंस लें खुशी से, सारे सपने सजायेंगे हम,

जो तुम सोचो कैसे धूम मचाओगे,
कपड़े, जेवर, कितने पटाखे लाओगे,
यादों में रखना तुम उन बेचारों को,
किस्मत से टूटे, तूफां के मारों को,
जिनके लिए, अब मुश्किल है ,
ज़िन्दगी का गुज़ारा सितम.....

और कभी दीपो का रंग भाये जो,
तुमको अपनों की यादें सताए जो,
घर होंगी कैसी खुशियाँ इस मौसम में,
माँ थोड़ा तो रोएगी मेरे गम में ,
मेरे बिना आँगन में शायद , रोशनी तो नहीं होगी कम....

आओ बनें सहारा किसीका गर ख़ुद को सहारा है कम,
मांगें दुआ आज के दिन तो दिल कोई भी रह जाए नम !

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आप इसकी विडियो यहाँ देख सकते हैं-
http://www.youtube.com/watch?v=JR51a3nYNtM

Sunday, October 19, 2008

कल समां था जहाँ !

(सितम्बर ग्यारह के दर्दनाक हादसे को समर्पित एक गीत )-
आप इसकी विडियो यहाँ देख सकते हैं ---
http://www.youtube.com/watch?v=1YoM5R3u9ds


कल समाँ था जहाँ , अब हवा है वहां,
एक पल में गया , जो सदी में बना,
सिर्फ़ मंज़र नहीं , हौसला खो गया,
खौफ़्फ़ कैसे करुँ मैं बयाँ.......

जब कहीं एक गोली चली, एक माँ का दिल रोया,
नज़रें देखे अपनों का रास्ता , जाने किस ने क्या खोया ,
फूल ही फूल थे, जिनके घर में वहां , अब तो है दर्द की दास्तां,
कल चमन था जहाँ, अब चुभन है वहां ......


इन सियासी दम पेचोखम में पिसता आज है अमन--वतन ,
कैसे रोकूँ कौमों के झगडे, कैसे बदलून , रंग-
-चमन ,
चाह कर भी कुछ कर सकूं अब मैं ,
डर है हर शक्श-
-दिल दरमियाँ...
कल अमन था जहाँ, अब जलन है वहां...

आओ कह दें हम उस खुदा से, बस करे अब जंगों का खेल,
फिर से आए रिश्तों में नरमी, फिर बुलंद हो कौमों का मेल,
आओ मिल के हम सब करें ये दुआ, फिर कोई जंग--गम आए ना.......
कल समां था जहाँ , अब हवा है वहां.....

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Monday, October 13, 2008

कोई इंडिया से जब आए ...

"कोई जाए तो ले आए, मेरी लाख दुआएं पाये " गीत कि धुन पर आधारित

कोई इंडिया से जब आए तो वो यही सोच कर आए,
कि मैं सपनों के देश में आ तो पाई रे ...

पर आकर इस प्लेस में यूँ लगता है.
डॉलर भी तो पेड़ पे नहीं आते हैं ,
मन तन्हा है, जीवन सूना फिर भी रे,
सुख दुःख में हम किस किस से मिल पाते हैं ?
मंहगा डे केयर है , जीरो पे शेएर है ,
कटे आधी तनखा टैक्स में ,लगता नहीं फेयर है !
बैक होम सब बोलें , तुम लाखों में डोलो,
सच्चाई हम जानें तुम हमको न बोलो !

हाँ ! इंडिया से नई मांग आई रे ....
कोई इंडिया से जब आए..

पर जीवन तो फिर भी चलता रहता है,
हमने यहीं पर हँसना गाना सीखा है,
बिना किसी बैसाखी के ख़ुद ही चलना ,
अब तो अपना देस ही अमरीका है !
उस माँ ने जनम दिया , इस माँ ने पाला है,
तो इस माँ का दर्जा उस माँ से आला है !

ए मेरे वतन के लोगों , ये बात जान लो हाँ !
रखना ऊंचा निज स्वाभिमान , तुम जग में रहो जहाँ ...

पूरब से आई कैसी, पुरवाई रे ....
कोई इंडिया से जब आए...

मेट्रीमोनी

एक दिन अकस्मात् , हो गई दासजी से मुलाकात,
हमने कहा कैसे हैं सर,
उन्होंने कहा क्या सुनाएँ ख़बर ?
तीस साल से हैं अमरीका ,
रहन सहन इस देश का सीखा,
कटी जवानी डॉलर पीछे ,
काम किया बस आँखें मींचे ,
दया प्रभु की सब है चंगा ,
बस जीवन में अब एक पंगा,

बड़ी कार , बड़ा बैंक बैलेंस , बड़ी सोसाइटी में घर है,
चाहिए तो बस बेटे को एक बहू और बेटी को एक वर है ,

हमने कहा - अजी ! टेक्नोलोजी का लाभ उठाइए ,
शादी डॉट कॉम पर जाइये ,
उन्होंने हमें घूरा , फिर कहा ,
हमने बहुत है खर्च किया ,
सारे साइटों पर सर्च किया ,
पर अपने तो भाग ही फूटे हैं ,
वहां तो आधे नाम ही झूठे हैं !
हाँ , एक आध सच्चे भी हैं,
हम से सीरियस , अच्छे भी हैं |

हमने बात करी, फोटो आए ,
हमने घर सबको दिखलाये,
बेटी यहीं जो पली बढ़ी ,
हर फोटो पे उसकी नाक चढी ,

हुई खुशी मैं सीना तान गया ,
चलो बेटा किसीपे मान गया ,
पर देखा जो मैंने फोटो दिल ऐसा मेरा धड़का था,
की मेरी फ्यूचर बहू रानी एक लड़की नहीं एक लड़का था ,

कोई बताये हमको ये आज,
ये कब बदला अपना समाज ,
य एरंग नया, वो संग नया,
अब जीने एक तो ढंग नया...

चलो बेटी की बताते हैं..

एक मित्र के सुपुत्र का बेटी को रिश्ता आया था,
फिर जुड़ जायेंगे भारत से ये सोचक के मन हर्षाया था,
फ्यूचर समधन से बोले हम ,
अब मिट जायेंगे सारे गम,
मेरी बेटी को अब तो अपनों का लाड मिलेगा,
वो पूछीं मेरे बेटे को कब तक ग्रीन कार्ड मिलेगा ?

मिस्टर दस थे बड़े उदास ,
टेंशन में सुबहो शाम थे,
निज देश त्याग , परदेस में
रहने के ये कुछ इनाम थे,

मिस्टर दास का सुनकर हाल कलेजा मेरा हिल गया ,
जो पहुँची मैं दफ्तर , एक मित्र भारतीय मिल गया ,
नाम तो उसका शान था,
हरदम रहता परेशान था,

जो मैंने सुनाई उसको दासजी की कथा ,
लगा सुनाने वो भी अपनी शादी की दारुण व्यथा !

उनका क्या सुनती हो ? हमारा सुनो ..

तुम सुनो तो मेरा हाल,पिछले तीन साल ..

एक बस एक भारतीय कन्या के लिए
बीन बजा रहा हूँ, सपने सजा रहा हूँ,
राग मल्हार गा रहा हूँ,
और रोटी के अभाव में पिजा खा रहा हूँ !

पर ये इंडियन लड़कियां इतनी कसाई हैं ,
की इनके लिए हम तो बकरे के भाई हैं ,

जितने हमारे सर पर बाल हैं,
उससे भी ज़्यादा उनके सवाल हैं ,

एक ने पूछा क्या है वीसा ,एक ने पूछा क्या है pay ?
सान फ्रांसिस्को में रहते हो, I hope you are not a gay !
एक ने पूछा स्टॉक हैं ? या रियल इस्टेट में डाला है?
या अब तक अपने तनखे से बस ख़ुद ही को पाला है?
क्या क्या कहूँ सवाल थे सारे , भाग गया मैं डर के मारे..

जो पूछेंगी ये लड़कियां इतने सवाल तकनीकी,
तो देखूँगा लड़की मैं - रुसी, चीनी , अमरीकी...
जाने इंडियन गर्ल्स को क्या हो गया है ?
इनकी शरम, इनका धरम कहाँ खो गया है?

हमारा मित्र भारतीय नारी के अभिमान को रो रहा था ,
हमें गर्व हो रहा था, बहुत गर्व हो रहा था !

फिर भी हिम्मत देने को हमने बोला,
लड़की educated है बम का गोला ..

कम पढ़ी लिखी भोली भाली कहो तो ढूंढ के लाऊँ ,
जो कहे पति को परमेश्वर , मैं तुमको दिखलाऊँ,

वो चीखा - नह्ह्ह्ह्हीं !
बीवी की मार तो सह लूँगा पर मंहगाई कैसे सहूँ ?
सिलिकन वेल्ली में रहना है तो हरदम यही कहूँ ...

बेशक लंगडी लूली हो कोई फियर नहीं है ,
वो भी क्या दुल्हन जो इंजीनियर नहीं है ?

इंजीनियर न सही , डॉक्टर ही सही,
दो तनखा के बिना तो गुजर डियर नहीं है !

हम लगे हुए थे बातों में,
ले कागज़ कुछ हाथों में ,
आई तमन्ना कुछ कहने ,
बड़े तंग कपड़े पहने....
जो निचे से कुछ ऊपर थे ,
और ऊपर से कुछ नीचे !
जी हाँ , बॉलीवुड ने हॉलीवुड को छोड़ दिया है पीछे !

मैंने कहा शान , मेरी बात मान,
घर की मुर्गी धर ले,
तू तमन्ना से ही शादी करले ,

शान तो चुप रहा पर तमन्ना बोली,
ये कैसी बातें खोली ?

शादी तो शादी है, कोई फास्ट फ़ूड नहीं है ,
वैसे भी शादी का मेरा मूड नहीं है !

लेकिन अगर तुम्हारा मित्र मेरा आधा किराया सह सकता है ,
तो मेरे साथ मेरे घर पर रह सकता है ...

बात साथ रहने कि ही है , शादी का क्या तर्क है ?
ऐसे रहें या वैसे , कोई फर्क है?

जी में आया दी चाटें में जड़ दूँ इसको आज,
पर ये नही तमन्ना , ये तो कह रहा है समाज !

घर घर में आज डिवोर्स हो रहे हैं !
स्कूल में सेक्स पर कोर्स हो रहे हैं ,
इराक में यू एस का फाॅर्स ढो रहे हैं,
और सारे प्रोजेक्ट इंडिया आउट सोर्स हो रहे हैं !

अंत में एक मंगल कामना के साथ विदा लेती हूँ-
अर्चना है यही कि भारतीय चेतना आपके करों में हो ,
आपकी या आपके बच्चों कि शादी अच्छे घरों में हो !

आप इस कविता की विडियो यहाँ देख सकते हैं -
http://www.youtube.com/watch?v=7kJ7nuV8wJc

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Friday, September 26, 2008

फिर ज़िन्दगी के दांव पेंच चलने लगे हैं !

किस राह पे हम आज यूँ ही चलने लगे हैं ?
आप ही के रंग में क्यूँ ढलने लगे हैं?

मोम का जिगर है तो बचें जी आग से,
हाय ! क्या करें जो आह से पिघलने लगे हैं ....

गरूर था कि आपको भी अपने सा बना देंगे,
अब ख़ुद को देख , हाथ अपने मलने लगे हैं ...

बताये ये कोई हमें , क्या ठीक , क्या ग़लत है?
फिर ज़िन्दगी के दांव पेंच चलने लगे हैं ....

जी चाहता है आज लिखें यक नया फ़साना ,
आ आ के लफ्ज़ कागजों पे टलने लगे हैं ......

चल फिर कोई ठोकर लगा, कर दे लहू लुहान,
ए ज़िन्दगी हम आज फिर संभलने लगे हैं ,

आपकी,
-अर्चना

Sunday, September 14, 2008

हिन्दी -Hindi

इसकी विडियो आप यहाँ देख सकते हैं-
http://www.youtube. com/watch? v=OPQ3ihoZsjo

हिन्दी हिन्दी करते हैं , कहने से डरते हैं,
Hindi don't know का बड़ा आम डायलोग है !
Hindi I love, but cannot say it अब ,
अंग्रेज़ी झाड़ने का बड़ा फैला आज रोग है !

कैसे रहे साथ ये जो बोलना न चाहें इसे,
दाम इसका तो अजी इसका प्रयोग है ,
दुनिया जो पाना चाहे , आप ही गंवाना चाहें ,
खोई पूँजी जानके ये कैसा संजोग है ,

आप ही जो न बोलेंगे, बच्चों से क्या आशा होगी,
अपनी सभ्यता को बच्चे नहीं तोल पाएंगे,
भूल नहीं इनकी , ये ज़िम्मेदारी है हमारी,
बच्चे भारतीयता में नहीं डोल पाएंगे,
बच्चों को जो ना दी हिन्दी ज्योति, हिन्दी बोली बोलो,
द्वार हिन्दी साहित्यों के कैसे खोल पाएंगे ?
कितने ही अंग्रेज़ी हाय- हेल्लो कर लें जी,
दादा- दादी संग ये तो नहीं बोल पाएंगे ......


इसे कठिन मनाना नहीं , माँ है अपना ही लेगी,
हाथों में तुम्हारी अब इसकी है लाज हो ,
गर्व रहे इसपे जी, भारत की बिंदी हिन्दी,
अमेरिका में ना छूटे इसका वो ताज हो,
ठान लें जो मन में की कोशिश करेंगे पूरी,
स्वाभिमान मात्र वाणी पर तुम्हें आज हो,
है ये पहचान मेरी, आन मेरी ,शान मेरी,
बोली पे हमेशा अब हिन्दी का ही राज हो !

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Friday, September 5, 2008

चाँद - चकोर

किसी गुलसितां में चहकती थी हरदम ,
दो आंखों में उसकी महकती थी शबनम ,
सभी फूल पाती उसी पर फ़िदा थे ,
जो गूंजे सदा में उसी की सदा थे |

थी लाडो सभी की चहेती चकोर ,
कूदती भागती थी वो चारों ही ओर,
था मासूम दिल ऐसा , भोली सी सूरत ,
थी उसके लिए ये जहाँ खूबसूरत ,

एक दिन जो नज़र आसमां पर पड़ी ,
चाँद के चेहरे से उसकी आँखें लड़ी,
देखती ही रही कुछ भी बोले वो ,
मुस्कुराये मगर राज़ खोले वो ,

फिर कहा उसने ये बड़े दांव से,
चाँद ला दो मुझे आसमां गाँव से ,
सब हँसे चल रे पगली जिद नहीं ऐसे करते ,
कभी तारों को देखा ज़मीं पे उतरते,

अगर वो ज़मीं पे सकता नहीं ,
तो मैं क्यों ख़ुद ही उस जाऊं वहीँ ,
यहीं तो दिखे है , उठाओ नज़र ,
हाथों से छूलूं , जो बढाऊं अगर ,

सब ये बोले जो दिखता है होता नहीं,
रेत के ढेर में पानी सोता नहीं ,
इश्क़ में कौन दुनिया में रोता नहीं ,
जो समझता है सपने पिरोता नहीं....


मानी उडी उड़ चली वो चकोर ,
दोनों पंख खोले वो अम्बर की ओर ,
दिन ही को देखा , रातों को जाना,
गर्मी सर्दी, हवा का ठिकाना ,

जो टूटा बुलंदी से दम आखरी,
तो प्यासी वो आके ज़मीं पे गिरी ,
अपने उजडे पंखों को मींचे हुए
पहुँची प्यासी पोखर साँस खींचे हुए ,

देखा जो पानी में था चाँद एक,
आई जान वापस , दिया मौत फ़ेंक ,
गई वो समझ दुनिया दारी को आज ,
लो तुम भी सुनो उस चकोरी का राज़ ,

जो ख्वाइश करो तुम कभी चाँद की ,
अपने घर में पानी का घडा डालना ,
जो सच्ची हो चाहत झुके आसमां,
हमसफ़र दिल तुम ज़रा बड़ा पालना |

Thursday, September 4, 2008

गंगा मौसी !

धन्यवाद देती हूँ श्री शरद तैलंग जी को जिन्होंने इस कविता की खामियां निकाल कर इसे तराशा है | इस कविता की पूर्णता में शरदजी का बहुत बड़ा हाथ है |
धन्यवाद शरदजी !

किसी देश में नदी किनारे , था मेरा एक गाँव,
धेनु, धरा , धन, धाम प्रचुर था, थी पीपल की छाँव,

उसी गाँव में मेरी प्यारी गंगा मौसी रहती थी,
था कोई न रिश्ता उनसे, यूँ ही मौसी कहती थी ,

हर गर्मी में गाँव जो जाती मैं उनसे ही खेली थी,
मैं थी नौ की, बीस की वो थीं, मेरी वही सहेली थीं,

याद है मुझको वो गर्मी , मौसी की हुई सगाई थी ,
मेरी मौसी गाँव के सबसे ऊंचे घर में ब्याही थी,

स्वर्ण जडित गहनों में , मेरी मौसी रमा सरीखी थी ,
लेकिन जाने क्यों उनकी मुस्कान बहुत ही फीकी थी ?

अगली गर्मी की छुट्टी में मौसी घर लाला आया,
इक प्यासे के घर में जैसे अमृत का प्याला आया

अनपढ़ मौसी के कहने पर ही शिक्षा का फूल खिला .
उनकी शुभ दृष्टि से गाँव को प्रथम एक स्कूल मिला .

तब स्कूल में शिक्षक आए एक, ज्ञान से थे भरपूर,
अनुपम तेज था चेहरे पर , सब चिंताओं से वो थे दूर,

मौसी ने अपनी भी शिक्षा , बड़े शौक से करवाई
कितना रोई मैं जब, उनकी पहली चिट्टी घर आई

मेरी भी कॉलेज की अब , तैयारियां जोरों पे थी,
मेरी जैसे सालों की , प्रतियोगिता औरों से थी ,

अबकी गर्मी मौसी को पहचान नही मैं पाई थी,
कितनी आभा थी उनमें जब मुझसे मिलने आई थी ....

कुंदन जैसा रंग था उनका बालक सी थी चंचलता
रूप कमल सा खिला खिला और नैनों में थी संबलता l

मैंने पूछा मौसी से - क्या शिक्षा से ये पाया है?
वो मुस्काई, बोली -"पगली, मन में प्रेम समाया है" .

ज्ञान के ही सागर ने ,मेरे इस जीवन को है छुआ ,
पता नहीं कब, क्यों और कैसे, पर कुछ तो है अवश्य हुआ !

मैं चौंकी थी -"ओ मौसी ! तू भी तो बस ह्द करती है
अपनों को तो छोड़ दिया अब तू गैरों पे मरती है !

तू भगिनी, तनया भार्या है, तू ममता है, जाया है
फिर राधा मीरा के जैसा, कैसा रूप बनाया है?

वो बोली- मेरा विवेक न जाने भाव में कहाँ खो गया ?
मैंने तो कुछ किया नहीं, बस ये तो अपने आप हो गया !

पर मेरे ये संस्कार हैं , मर्यादा न छोडूंगी
अपने कर्तव्यों से भी मैं, कभी नहीं मुंह मोडूंगी

पर बतलाओ क्या खुशियों पर मेरा कुछ अधिकार नहीं?
कैसा नीरस बोझिल जीवन, जिसमे सच्चा प्यार नहीं..

मैंने सोचा देखूं मौसी की क्यों ऐसी मति हुई ?
और प्रेम के मार्ग पर उसकी , आज कहाँ तक गति हुई ?

अगले दिन देखा जब शिक्षक आए , उन्हें पढाने भाषा ,
देख रही थी मैं उनमें थी , भरी हुई अद्भुत अभिलाषा ,

इक मोटा सा परदा उन दोनों के बीच में तना खड़ा-
हया शर्म संकोच का पहरा- उस से भी था बहुत बड़ा !

देख रहे थे इक- दूजे को, फिर भी कैसे तृष्ण रहे-!
मेरे आगे मानो जैसे स्वयम ही राधा कृष्ण रहे .

ऐसी निर्मल प्रेम कथा को जाने किसकी नज़र लगी-?
प्रेम की दुश्मन दुनिया बन गई , उसको ये जब ख़बर लगी .

मौसी की आजादी पर फिर पाबंदों की पाश मिली,
विद्या के विद्याधर की पटरी के ऊपर लाश मिली,

याद मुझे है आज भी वो दिन, जब मेरा कौतुक जागा
सारा गाँव न्याय करने को था पचांयत में लागा !

कहलाई थी गंगा मौसी, कुलक्षनी , डायन कुलटा,
एक सीता समान नारी का, भाग्य हाय कैसा पलटा ?

फिर पंचों ने सोच समझ कर एक फ़ैसला था तोला ,
सब हो माफ़ तुझे जो "माफ़ी मांगे" , सबने ये बोला

मौसी ने जो कहा वहाँ - सब गाँव उसी से था गूंजा,
प्रेम किया है स्वच्छ हृदय से , ये ही बस मेरी पूजा,

चोरी नहीं , डकैती न की , नहीं दिखाई शक्ति है,
मर्यादा न तोडी है , ये मात्र हृदय की भक्ति है !

क्षमा जो मांगूंगी तो मेरा प्रेम यहाँ लज्जित होगा ,
इसकी खातिर मृत्यु भी आए , अंत मेरा सज्जित होगा ।

क्या अपराध ? दोष क्या मेरा ? , इससे किसको है हानि ?
क्या है ये अपराध अदम्य ,जो कही प्रेम की है बानी !

मीरा के गुण गाते हो तुम, राधा की करते पूजा
अपने ही आँगन में क्यों व्यवहार किया करते दूजा ?

तुमने तो व्यापार बनाया सब भावुक संबंधों को
हर रिश्ते के साथ बाँध कर इन झूठे अनुबंधों को

आज तुम्हें मैं जगा सकूं तो स्वयं आज मैं जागूंगी.
माफ़ करें , पर प्रेम की खातिर मैं माफ़ी न मांगूंगी !

जिसने चाहा ये समाज जागे , ख़ुद वो ही सो गई,
पर मर कर भी मौसी मेरी अमर सदा को हो गई !!!!

Sunday, August 31, 2008

मेरी सहेली

इसकी विडियो आप यहाँ देख सकते हैं-
http://www.youtube.com/watch?v=mY9hYl_0i8Y

ज़िन्दगी
भर उस से मेरी होड़ सी लगी रही,
वो पहेली, मेरी सहेली , निज रक्त सी सगी रही ,
बात करके आज उस से , मन लगा उड़ने वहां पर ,
घर द्वार , इस संसार से, हट के बसे दुनिया जहाँ पर ,

जल उठी मेरी मन की नारी , उस चंचला को देख कर ,
स्वयं को उस आकांक्षी से नापते लगता है डर ,
चले तो एक साथ थे , हम दोनों एक चाह में,
उच्च शिखरों के स्वप्न में , अभिलाषा के राह में ,

मेरी सखी, जिसने रखी, जो भी कहा सब कर गई ,
मैं तो जैसे , इतनी जल्दी, इस जीवन से डर गई ,
पच्चीस में ही पचास का एहसास जब होने लगे ,
उमंगें जब कर्तव्य के काँधें पे ही सोने लगे ,
जब स्वप्न से आकर भिडें धरातल की वो सच्चाइयाँ,
तोड़ दे तरंगों को जो संसार की परछाईयाँ,

तो विद्रोह कर उठ ता है मन की क्यों चडी उस डाल पर,
जहाँ पहुँच कर बस नहीं है , स्वयं अपना काल पर ,
जब नचाता है समय इंसान को निज ताल पर ,
देख हंस देता है मानव स्वयं अपने हाल पर ,

कहने लगी मेरी सखी क्या थी तू क्या हो गई ,
क्या तेरे सपनों की वो सारी कलियाँ खो गई ?
बादल, झरने, बरखा, पानी ,
तितली , छतरी , आसमानी ,
क्या तेरे जग जीतने की वो अभिलाषा खो गई ?
तू तो एक छोटे से घर की हो गई ,

उत्तर दिया मुड कर उसे मेरे विवेक ने गर्व से ,
हैं कम नहीं मेरे ये दिन त्यौहार या किसी पर्व से ,
जीता जगत तो क्या जीता , बन गए राजा तो क्या जानें ?
कर सको जीवन रचना , फूँक सको प्राण तो हम मानें !

पाया जो नारी का ये तन वात्सल्य प्रथम कर्तव्य है ,
आज ममता के ही दम से विश्व जनता सभ्य है ,
कर सकें हम गर किसी एक हृदय का शुद्ध विकास ,
तभी रास्ट्र निर्माण बन पायेगा सक्षम अविनाश ,

मत मान लो, घर द्वार मेरे स्वप्न का परित्याग है ,
मेरी आकांक्षा तो बड्नावल की वो आग है ,
कर्तव्य की प्राथमिकता अनुसार नारी ढलती है यहाँ ,
पर आकांक्षाएं तो संग संग चलती है यहाँ ,

पंचम में बृहस्पति अब मेरा गुरु हुआ है ,
अरे देखो ना , जीवन तो अभी शुरू हुआ है !
जो कहा था मैंने ना कर दूँ, अब वही तीर तो साधा है,
सब होगा सिद्ध अब जीवन में, ये मेरा तुमसे वादा है !

सुन मेरे ये वचन मेरी सखी अब मौन है ,
बंधुओं अब ये तो बूझो, वो सखी आख़िर कौन है ?
इस बात को कैसे कहूँ, इसी बात का तो दुःख है ,
वो कोई और नहीं मेरी तस्वीर का ही रुख है ,

रुख वह जो अब तक बचपन के उन ख़्वाबों में बंद है ,
जो उन्मुक्त है , आजाद है , स्वतंत्र है, स्वछन्द है ,
एक रुख ये है जो रखे है पहले जिम्मेदारियों को ,
प्रणाम करते हैं अंत में सब माँओं को सब नारियों को |

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Monday, August 25, 2008

Every action has an equal & "opposite" reaction !

कह गए थे न्यूटन साहब, एक पते की बात !
चलो आज मैं share करुँ वो बात आपके साथ ....

कहा उन्होंने हर क्रिया की प्रतिक्रिया हमेशा आती है,
क्षमता उतनी ही , पर उसकी दिशा बदल सी जाती है ,

आज जाने दिल में इतना दुःख क्योंकर छाया है,
बात साफ है शायद तूने, किसी बड़ी खुशी को पाया है ,

करुँ क्या मैं उपाय कहो ,भाव रुके न देश,वन, प्रान्तों से ....
पहुँच ही जाते हैं दिल तक , चले न्यूटन के सिद्धांतों से !

मैं खुशी खुशी कांटें ले लूँ जो राह में तेरे फूल है,
जो गम से मेरे तू खुश है, तो दर्द भी मुझे कबूल है !

Saturday, August 16, 2008

पराया

दिल में फिर सिहरन सी? किसका ये साया है ?
वीराने दिल में फिर रहने कोई आया है.....

कहता है दिल तुमको हाथों से छूलूं,
डर है टूटे जो रिश्ता बनाया है.....

मुझपे तो थी , सारी दुनिया की बंदिश,
दिल मेरा तुमपे किस तरह से आया है?

गर है हकीक़त, ये कैसे मैं मानूं,
जो अपना लगा था, वो आँगन पराया है !
मुहब्बत से हम तो सींचे जा रहे थे,
वो प्यारा सा , नन्हा सा पौधा पराया है,
वो कतरा खुशी का जो पाया अभी था,
वो ज़ज्बा, वो कतरा, चमन ही पराया है,
किसे मानें अपना ? किसे अब पराया ?
जो अपना था छूटा, जो आया पराया है ....

हासिल क्या होगा , तुम्हे यार मेरे?
क्यों तुमने मुझको दीवाना बनाया है?

तुम भी तो झुल्सोगे जो हम जलेंगे,
तौबा खुदा ने क्या शोला लगाया है...

चलो उसको ही सौंपें ये कुदरत की बातें,
कैसा लगा जो ये नगमा सुनाया है?

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

दौर-ऐ-इश्क

गुज़र रही थी ज़िन्दगी अपने ही तौर से ,
नज़र लगी किसी की ,मिले हम इश्क--दौर से,

हंसने लगी है दर्पण,कलम भी मुस्कुराई,
ये मैं ही हूँ, या मिल रही हूँ शक्श-और से ?

हर वक्त दिल पर मची हुई परछाईयों की चीख!
कैसे करुँ मैं बंद कान हरसू ये शोर से,

दुनिया तो देखती है मेरे गीत का समाँ,
मिल सका है कौन उन गीतों के छोर से ?

मेरी उम्मीद भी है किसी बच्चे की तरह ,
कोई सुने, सुने , रोये है ज़ोर से !

रिश्तों का क्या भरोसा? अभी हैं अभी नहीं,
पर दुनिया ही बसी है , इस रिश्तों की डोर से !








रूह बोलती है !

कलम नहीं अब तो मेरी रूह बोलती है ,
दीवानगी से अपने आशिकी को तोलती है !

नहीं ख़बर थी हमको महंगा था इतना सौदा ,
ये दिलागी सुकून--दिल को मोल्ती है ...

दिल करे दुआ, तुझे भी हो मुहब्बत ,
सुनते हैं , गली गली तेरी नज़रें डोलती है ?

चाहत जो तुझको आए ,तो इस कदर सताए ,
सिलवट वो चादरों पे जैसे राज़ खोलती है...


मिल जाए तुखो मंजिल फिर भी दुआ करेंगे,
इस दर्द--गम में दिल तेरी हँसी टटोलती है !



Zindagi - ज़िन्दगी

वह रे तेरी धाक ज़िन्दगी !
आईने सी पाक ज़िन्दगी ,
पल में कर दे शहंशाह तो ,
पल में कर दे ख़ाक ज़िन्दगी ...

उनसे मिलना, फिर मिलना , फिर मिलना, मिलते रहना,
नए बहाने मेल जोल के देना तू हर बार ज़िन्दगी ...

सोच सोच कर दिल हँसता है, कैसी ये नादानी है,
फूल पराया है जिसपे आया हमको प्यार ज़िन्दगी !

Friday, August 15, 2008

mausam-e-ashikana - मौसम-ऐ-आशिकाना

था सौदा बड़ा ही ये सस्ता मगर,
दिल के खोने का गम तो हुआ है हमें,
शायरी जैसी अपनी तो उड़ने लगी,
तेरी चाहत ने जबसे छुआ है हमें,

अब ख्वाहिश है जियें जी भर के इसे,
कल रहे रहे मौसम--आशिकाना ,
ये खुदा की है रहमत, तुम जो भी कहो ,
हर किसी को मिले खुशी का खजाना .....

dhadkan - धड़कन

ये कहती है दुनिया , क़दम बढ़ा ,
नशा ये मुहब्बत का है सर चढा ,
जो चढ़ जाए आए क़यामत की सूरत,
लगे ये जहाँ हर झलक खूबसूरत ,
पर टूटेगा जब तेरे दिल का गुमाँ ये,
तो बन जाएगा हर समाँ बद्नूमां ये,
जो रो ओगे तुम तो ये दुनिया हँसेगी ,
तेरे आंसूओं पे ये ताने कसेगी,
पता है सिला मुझको उल्फत का तब भी !
धड़कता है दिल तुमको देखूं मैं जब भी !

Phursat - फुर्सत

फुर्सत मिल जाए तुम्हें जो कहीं ,
पूछना इतना नाज़ करती वो क्यों है?
जो वक्त--शिकायत का ले वो बहाना ,
उससे कहना दिल में अरमाँ वो भरती ही क्यों है?

फुर्सत ही ने मुझसे कभी ये कहा था,
की भूले से दिल ये लगाना नहीं ,
मिलेगी फुर्सत जो दिल को लगाया ,
मैं मुहब्बत में थी मैंने माना नहीं...

अब मिला जो सिला दिल लगाने का मुझको ,
मैं रो रो के ढूढूं वो फुर्सत के पल,
हर वक्त एक साया , है नज़रों पे छाया ,
मशरूफ है दिल मेरा आजकल !

naya naya- नया नया !


जहाँ--आरजू में दिल ये गया गया है ,
ये आशिकी का फन भी ज़रा नया नया है...

हैरान हूँ ख़ुद में देख अपने आईने का रंग ,
ऐसे तो कभी थे मेरे ख्वाईशों के ढंग,
कहते हैं लोग मुझसे कुछ है ज़रूर आज,
खामोश जुबां पर निगाह बयां बयां है ....

नहीं उम्मीद ही तेरा इंतज़ार है ,
संजीदगी में है या शौकिया ही प्यार है?
खिला है कैसा फूल पत्थरों के गाँव में ,
खंजर तो कई खाए , तीर मयां मयां है !

मेरे खुदा शुकर है तेरा रहम--करम है ,
गायें तेरे ही गीत जो हाथों में कलम है,
मिले हमें तारीफ़ तेरे बोल जो कहें ,
शर्मिंदगी से दिल ये मेरा स्याह स्याह है....

ये आशिकी का फन भी ज़रा नया नया है.......

judai- जुदाई

मैंने माना की दिल तेरा कायल हुआ है,
बिना कुछ कहे देखो घायल हुआ है ,
अब डर है बढे फरेबी उमीदें,
चलो रस्ते बदलें, सब ख़्वाबों को सी दें,
जो मुमकिन नहीं तुमको अपना बनाना ,
गवारा नहीं फिर ये दिल का लगाना,
दिल--आरजू के वफ़ा की कसम,
अब कभी तुमको आवाज़ देंगे हम,
कभी गुजरो तुम जो गली से हमार
देखेंगे तुमको चुपके चिल्मन सहारे ,
दुआ है रहे तू हमेशा खुशी से,
जुदा हो रहे हैं तेरी ज़िन्दगी से ....

Wednesday, August 13, 2008

आज - aaj!

संभला है दिल बड़ी मुश्किल से आज ,
लो चल दिए उठ के तेरी महफिल से आज ,

तूफाँ में भी कश्ती हँसती रही ,
लो फिर आके टूटा दिल साहिल पे आज ,

समंदर थी दोस्ती आपकी अब ये जाना ,
हर आँसू में खारापन कुछ शामिल है आज,

अब पूछो मेरी अमीरी के जलवे,
हर आह पे सबकी वाह हासिल है आज,

नहीं खेलना अपने दिल से हमें अब,
ये टूटने के भी नही काबिल है आज !

Thursday, August 7, 2008

Solutions-बूझ मेरा क्या song रे? -classic-songs part II

1. इनकी मीठी बातें ये मतवाली आँखें ज़हर है प्यार का |
Oo ..Dil lena khel hai Dildar ka, bhule se naam na lo pyar ka - Zamane Ko Dikhana Hai, RD Burman, Majrooh Sultanpuri


. जब हम न होंगे तब हमारी ख़ाक पर तुम रुकोगे चलते चलते ,
Rahe na rahe hum, mehka karenge Ban ke kali, ban ke saba, baagh-e-wafa mein! - Mamta, Lata, Roshan, Majrooh Sultanpuri


. इक हवा का मैं झोंका , दे जाउंगी मैं धोखा , ऐसा मौका तो आने दो
Tauba-tauba kya hoga hona hai jo woh hoga hona hai jo ho jaane do - Mr Natwar lal, Asha, Rajesh Roshan,


. कौन जाने बंसुरिया किसको बुलाए ?
Shyam teri bansi pukare radha naam, log kare meera ko yuhi badnam - geet Gata chal, Aarti mukherjee-Jaspal singh , Ravindra Jain, Ravindra Jain


. देर न करना कहीं ये आस टूट जाए , साथ टूट जाए ..
Barsaat mai , barsaat mai humse mile tum sajan ...tum se mile hum barsaat mai - Barsaat, Lata, Shankar-Jaikishan (Debut), Shailendra


. वरना क्या बात थी तू कोई सितमगर तो नहीं ?
Woh tere pyar ka gum, ik bahana hai sanam, apni kismat hi kuch aisi thi, ki dil tut gaya - My love, Mukesh, Daan Singh, Anand Bakshi

७. सोचा था ये बढ़ जाएँगी तन्हाईयाँ जब रातों की ,
Patthar Ke Sanam, Tujhe Humne Mohabbat Ka Khuda Jaana, Badhi Bhool Hui Arey Humne, Yeh Kya Samjha Yeh Kya Jaana - Pathar Ke Sanam, Rafi, Laxmi-Pyare, Majrooh Sultanpuri

. तुमने तो आकाश बिछाया , मेरे नंगे पैरों में ज़मीं है ,
Katra katra milti hai, katra katra jeene do. zindgi hai bahne do, pyaasi hoon main pyasi rahne do - Izzazat, Asha, RD Burman, Gulzar


. मैंने सिन्दूर से मांग अपनी भरी, रूप सैयां के कारण सजाया ,
Piya aiso jiya mai samaay gayo re, ke mai tan man ki sudh budh gawa baithi - Sahib, Biwi aur Gulam, Geeta dutt, Hemant Kumar (This movie is a master piece and one of my favorite), Shakeel Badayuni

१०
.सखियाँ न मारो मोहे ताने , जिसको न लागी वो क्या जाने ?
Akhiya bhool gayi hai sona. dil pai hua jaadu tona - Goonj uthi shehnai, Geeta Dutt & Lata,Vasant Desai's composition, Bharat Vyas

११
. मेरा पागल पना तो कोई देखो पुकारूं मैं चन्दा को साजन के नाम से |
Zulmi sang aankh ladi re, sakhi mai kase kahu - Madhumati, Lata, Salil Chaudhry, Shailendra

१२
. दिया टूटे तो है माटि , जले तो ये ज्योति बने ...
Kahe ko roye chahe jo hoye safal hogi teri Aradhana - Aradhana, SD Burman, Anand Bakshi

१३
. गुण तो न था कोई भी, अवगुण मेरे भुला देना |
O re Maajhi..Mere saajan hai uss paar, mai iss paar, ab ki baar le chal paar - Bandini, SD Burman, Shailendra

१४
. पूछे कोई दर्द-ऐ-वफ़ा कौन दे गया ? रातों को जागने की सज़ा कौन दे गया ?
Duniya kare sawal tau hum kya jawab de , tumko na ho khayal tau hum kya jawab de - Bahu Begam, Lata , Roshan, Sahir Ludhianvi

१५
. न देंगे तुझे इल्जाम बेवफाई का, मगर गिला तो करेंगे तेरी जुदाई का ...
Hum intezar karenge kayamat tak, khuda kare ki kayamat ho aur tu aaye - Bahu Begam, Asha-Rafi, Roshan, Sahir Ludhianvi

Wednesday, August 6, 2008

अपने तो अपने होते हैं !

परिवार एक आस्था है , एक विश्वास है जो ये दिलासा देता है की कहीं भी, कभी भी , जीवन के किसी भी मोड़ परकोई है , कोई साथ है | अब वो माँ का प्यार हो या पिता का दुलार, पति का विश्वास हो या बच्चों से घर की सफाई कासत्यानाश ! चाहें हम बर्तनों की तरह खनकें , पर उस खनक में भी एक संगीत है , कभी सुना है आपने ?

नव सूर्य की आरुशी से शनि का टूटा कोप है ,
जग जगमग उजियारा है , जीवन में नई hope है |

अपनों के ही कुछ बातों से मुझको दुःख पहुँचा था ,
पर पहचाना है, उस ताड़ना का , उद्द्येश्य ऊंचा था !

वो कहते नहीं कभी मुंह से , नहीं करते प्रेम प्रदर्शन हैं ,
पर ये जान चुकी हूँ मैं, उनका सब कुछ मुझ पर अर्पण हैं !

अपनों के ही सपनों से हमको मिलता आकार है ,
मम्मी पापा से बढ़कर मेरे सास-ससुर का प्यार है ,

आज उनके वंश की अभिन्न कड़ी हो गई हूँ मैं ,
और छोटी छोटी बातों से अब बड़ी हो गई हूँ मैं,

आज मिट गयीं है सारी वहमें, प्रेम का उगता बीज है ,
घर में फिर खुशियाँ आयीं , आज 'हरियाली' तीज है !

आपकी,
-अर्चना

बूझ मेरा क्या song रे?- tritiya

सॉरी मित्रों , आप से वादा किया था बूझो सीरीज़ के अगले अंक का | काम इतना हो गया की पूछो मत |
चलिए , देर आए, दुरुस्त आए | सवाल थोड़े टफ बंनाने के लिए अब की बार सिर्फ़ एक ही लाइन दिया है पर मुझे पता है की आप लोग इसे भी आसानी से भांप लेंगे | कृपया कर पूरा मुखडा बताइयेगा -
और हाँ , no cheating ! अरे ! आए तो आए, नहीं तो नहीं की सी बात ....

अंतरे से मुखडा बताइए ..

१. इनकी मीठी बातें ये मतवाली आँखें ज़हर है प्यार का |

२. जब हम न होंगे तब हमारी ख़ाक पर तुम रुकोगे चलते चलते ,

३. इक हवा का मैं झोंका , दे जाउंगी मैं धोखा , ऐसा मौका तो आने दो

४. कौन जाने बंसुरिया किसको बुलाए ?

५. देर न करना कहीं ये आस टूट जाए , साथ टूट जाए ..

६. वरना क्या बात थी तू कोई सितमगर तो नहीं ?

७. सोचा था ये बढ़ जाएँगी तन्हाईयाँ जब रातों की ,

८. तुमने तो आकाश बिछाया , मेरे नंगे पैरों में ज़मीं है ,

९. मैंने सिन्दूर से मांग अपनी भरी, रूप सैयां के कारण सजाया ,

१०.सखियाँ न मारो मोहे ताने , जिसको न लागी वो क्या जाने ?

११. मेरा पागल पना तो कोई देखो पुकारूं मैं चन्दा को साजन के नाम से |

१२. दिया टूटे तो है माटि , जले तो ये ज्योति बने ...

१३. गुण तो न था कोई भी, अवगुण मेरे भुला देना |

१४. पूछे कोई दर्द-ऐ-वफ़ा कौन दे गया ? रातों को जागने की सज़ा कौन दे गया ?

१५. न देंगे तुझे इल्जाम बेवफाई का, मगर गिला तो करेंगे तेरी जुदाई का ...

सोचो ,सोचो ,सोचो ....

-अर्चना

Sunday, August 3, 2008

Solution - बूझ मेरा क्या song रे? -dvitiya

१. वो हसीना वो नीलम परी
कर गई कैसी जादूगरी
नींद इन आँखों से छीन ली
दिल में बेचैनियाँ है भरी
मैं आवारा हूँ बनजारा हूँ अब ये समझाऊँ किस किसको
दिल में मेरे है दर्द-ए-डिस्को (ओम शांति ओम)

२. दिल दीवाना, बिन सजना के माने ना
ये पगला है समझाने से समझे ना (मैनें प्यार किया)

३. तड़प-तड़प के इस दिल से आह निकलती रही
मुझको सजा़ दी प्यार की
ऐसा क्या गुनाह किया, कि लुट गये हम तेरी मोहब्बत में (हम दिल दे चुके सनम)

४. पल पल पल पल हर पल हर पल
कैसे कटेगा पल हर पल हर पल -(लगे रहो मुन्ना भाई)

५. मधुबन में जो कन्हैया किसी गोपी से मिले
कभी मुस्काये कभी छेड़े कभी बात करे
राधा कैसे ना जले (लगान)

६.यूँ तो मैं बतलाता नहीं
पर अंधेरे से डरता हूँ मैं माँ (तारे ज़मीन पर)

७.धड़क धड़्क धुआं उडाए रे _ (बन्टी और बबली)

८. हाँ है कोई तो वज़ह जो जीने का मज़ा यूँ आने लगा
ये हवाओं में है क्या, थोड़ा सा जो नशा यूँ छाने लगा
पूछो ना पूछो मुझे क्या हुआ है तेरी बाँहों मे आकर
पूछो ना पूछो मुझे क्या मिलेगा तेरी यादों मे जीकर
ये इश्क़ हाये बैठे बिठाये जन्नत दिखाये हाँ..ओ रामा (जब वी मेट)

९. याई रे याई रे ज़ोर लगा के नाचो रे (रंगीला)

१०. कहने को जश्ने बहारां है ( जोधा अकबर)

Friday, August 1, 2008

solution of - बूझ मेरा क्या song रे?-pratham

१. हँसता हुआ नूरानी चेहरा , काली जुल्फ़ें रंग सुनहरा
तेरी जवानी तौबा तौबा रे दिलरुबा दिलरुबा
(Parasmani, Lata-Kamal Barot, Laxmi-Pyare)

२. अपलम चपलम , चपलाई रे दुनिया को छॊड तेरी गली आई रे..
हो दुनिया को छोड़ तेरी गली आई रे आई रे आई रे
(Azaad, Lata, C Ramchandra's composition)

३. सारंगा तेरी याद में नैन हुए बैचैन
मधुर तुम्हरे मिलन बिना दिन कटते नहीं रैन ।
(Saaranga , Mukesh, Sardar Malik )

४. ये अपना रंजोग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हे दिल की क़सम ये दुख ये वीरानी मुझे दे दो
(Shagun, Jagjit Kaur, Jagjit Kaur's husband - guess?)

५. दिल में किसी की याद का जलता हुआ दिया
दुनिया की आँधियों से भला ये बुझेगा क्या ?
(Ek Mahal ho sapno ka, Lata, Ravi)

६. अफ़साना लिख रही हूं दिले बेक़रार का
आँखों मे दर्द दिल में तेरे इन्तजा़र का ।

७.आन मिलो आन मिलो श्याम सांवरे , ब्रिज में अकेली राधा खोई खोई फिरे, हो राधा खोई खोई फिरे |
( Devdas, Geeta-Maandey, SD Burman)

८. ओहरे ताल मिले नदी के जल में नदी मिले सागर में
सागर मिले कौन से जल में कोई जाने न
( Anokhi Raat, Mukesh, Roshan)

९. मिलती है जिन्दगी में मुहब्बत कभी कभी,
होती है दिलबरों की इनायत कभी कभी
(Aankhen, Lata, Ravi)

१०. कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए सांझ की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आए, मेरे खयालों के आंगन में कोई सपनों के दीप जलाए
(Anand, Mukesh, Salil Chaudhry)

बूझ मेरा क्या song रे?- Dvitiya

मैंने इसे बाद में पोस्ट करने का सोचा था पर लगा किसी किसी को पुराने गाने आते हैं किसी को नए, तो इन दोनों को एक ही साथ पोस्ट करना चाहिए |
और हाँ कोई चीटिंग नहीं करना , ओ के ?
और ये भी बता दूँ, दोनों sections में , जो भी सबसे ज़्यादा सवाल सही करेगा , उसे/ उन्हें इनाम भी मिलेगा ! अब इनाम क्या है वो तो जीतने वाले को ही बताया जाएगा ..
अरे ! disclaimer तो भूल गई .. कोई स्पेलिंग ग़लत हो तो माफ़ कीजियेगा !

तो लीजिये नए गीतों को बूझने और जूझने के सवाल -

१. लम्हा लम्हा अरमानों की फरमाइश थी ,
लम्हा लम्हा जुर्रत की आजमाइश थी

२. जी ये चाहे बना के आँचल तुमको लपेटूं तन पे ,
और कभी की मैं उड़ जाऊं तुम को लिए गगन पे ,

३. कभी है मिलन , कभी फुरकत ,
है यही क्या वो मोहब्बत ,
वाह रे वाह तेरी कुदरत !

४. कल क्या हो किसको ख़बर , लगता है डर , लगता है डर
इस पल में सिमटे उमर , रात कटे न , कभी हो सेहर ......

५. मन में है राधे को कान्हा जो बसाए ,
तो कान्हा काहे को उसे न बताये ?

६. भेज ना इतना दूर मुझको तू ,
याद भी तुझको आ न पाऊँ , ....
क्या इतना बुरा हूँ मैं , ....

७. ओहो ज़रा रास्ता तो दो , थोड़ा सा बादल चखना है ,
बड़ा बड़ा कोयले से नाम फलक पर लिखना है ,

८. तोडे मैंने सारे ही बंधन ज़माने तेरे , तोडूंगी न मैं वा..........दा,
आधा हिस्सा मेरे इस दिल की कहानी का तू, पिया मैं बाकी आधा ,

९. इतने चेहरों में अपने चेहरे की पहचान तो हो,
बड़े बड़े नामों में अपना भी नाम-ओ- निशाँ तो हो

१०. हमने जो था नग्मा सुना , दिल ने था उसको चुना , ये दास्ताँ हमें वक्त ने कैसी सुनाई ?
हम जो अगर हैं गमगीन , वो भी उधर खुश तो नहीं , मुलाकातों में जैसे घुल सी गई तन्हाई .


बोलो , बोलो , बोलो .....

बूझ मेरा क्या song रे?-pratham

पिछले हफ्ते हमने स्विम पूल पार्टी में ये गेम खेला था की अंतरे से मुखडा पहचानना था |
बहुत मज़ा आया था | कई गीत ऐसे होते हैं की बस ज़बान पर हैं पर याद नही आते हैं |
चलिए देखें , आप में से पहले कौन इसे बूझ सकता है |
और हाँ इसके बाद नए गानों की भी एक सीरीज़ आएगी |
देखें , आप में से प्रसिद्ध गीतों में बसी 'कविता' को कौन वास्तव में सुनता है ???
हो सके तो जवाब में पूरा मुखडा लिखियेगा -


१. जी भर के तडपा ले, जी भर के वार कर ,
सब कुछ गवारा है, थोड़ा सा प्यार कर ,

२. अब पछताए दिल, हाय कित जाए दिल ,
काहे को ये आग लगायी रे , लगायी रे , लगायी रे ,

३. वो अम्बुआ का झूलना , वो पीपल की छाओं ,
घूंघट में जब चाँद था , मेहंदी लगी थी पांव ,

४. वो दिल जो मैंने माँगा था मगर औरों ने पाया था ,
बड़ी खैर है अगर , उसकी पशेमानी मुझे दे दो ....

५. अब वो करम करें या सितम उनका फ़ैसला ,
हमने तो दिल में प्यार का शोला जला लिया

६. आजा के अब तो आँख में आंसू भी आ गए ,
सागर छलक उठा मेरे सब्र-ओ-करार का ,

७. ब्रिन्दावन की गलियन में तुम बिन जियरा न लागे ,
निस दिन तोहरी बाट निहारे व्याकुल नैना अभागे ,

८. अनजाने होठों पर तो पहचाने गीत हैं ,
कल तक जो बेगाने थे , जन्मों के मीत हैं ,

९. फिर खो न जाएँ हम किसी दुनिया की भीड़ में ,
मिलती है पास आने की ,........... ......... ........

१०. कभी तो ये दिल कहीं मिल नहीं पाते ,
कहीं ये निकल आयें जन्मों के नाते ,

Lets Get Set & Go......

गति ही प्रगति का मूल है, ये मंत्र न भूलना !
-अर्चना

Thursday, July 31, 2008

कल सूरज नया नया होगा

ऐसा होता है ना , कभी कभी कोई कोई दिन बहुत भारी होता है |लगता है , आज ही सब एक साथ कैसे हुआ | परकहते हैं जो होता है अच्छा ही होता है | आज मन थोड़ा उदास था | पता नहीं शायद आपको कविता थोडी confused लगेगी | ऐसा हो तो क्षमा कीजियेगा | कल शायद एक नया दिन और एक नई कविता हो !

सुबह सुबह जो निकली घर से सब उजला - उजला था ,
हंसती हंसती खोई खोई , मन भी भला - भला था,

रात गई गई सी थी , अँधेरा गया गया था ,
किरण नई नई सी थी और सूरज नया नया था ,

किसी किसी दिन भाग्य उदित हो , और कभी उतरे है ,
उंच नीच के खेल , खेल ये मानव से परे है |

यूँ तो मैं कहती रहती हूँ , आज दिन था सुनने का ,
मिलना था , सो मिल गया, इनाम था सपना बुनने का |

जीवन के हर पर्व से,
मिलती थी मैं गर्व से ,
चार स्तम्भ के बूते पर मैंने हर युद्ध है जीता ,
मेरा परिवार, मेरी नौकरी , मेरे मित्र और मेरी कविता ,

यही चार मेरे जग थे , इन सबके महत्व अलग थे ,

पर आज जाने क्यों इनमे से मुझे चुनना पड़ा ,
आज मुझे अपनों से, अपनों के लिए, सुनना पड़ा |

माँ, बहु , पत्नी के तौर से , मुझे सब बातें देखनी थीं ,
और मेरे समय पर आधिपत्य करे,मेरी कविता और मेरी लेखनी थी !

सारे घर को प्रेम से मेरे , जाने कैसा बैर था |
पर प्यार मेरा बच ही जाता , खुदा का खैर था ,

ये बोले -अपने करियर पर तुम कोशिश तो चंद करो ,
छोडो ये शो और सम्मलेन , अब कविता लिखना बंद करो ,

सासु माँ की बानी - बहुरानी , दिन - रात - समय का मान करो ,
अपने शौक तो रहने दो , अब बस बच्चों पे ध्यान करो ,

आज हमारे परम मित्र ने , हमारी ही परीक्षा ले ली !
और नौकरी ने भी हमसे फिर आँख मिचौली है खेली ,

पलकों पर बैठें हैं मोती , तैयार हैं बाहर आने को ,
पर मैं डट गई हूं अब तो , अपनी मंजिल पाने को,

हर मोती, हर मित्र, सब कुछ , जीवन का बस एक पल है ,
पर जो रहता है साथ हमेशा , वो आने वाला कल है !

कल सुबह सुबह जो निकलूंगी मैं , सब उजला - उजला होगा ,
हंसती हंसती खोई खोई , मन भी भला - भला होगा ,

रात गई गई होगी , अँधेरा गया गया होगा ,
किरण नई नई होगी और सूरज नया नया होगा ............ ......... .........

Monday, July 28, 2008

पता है, नहीं हो , पर क्यों लगता है, यहीं हो

पता है, नहीं हो , पर क्यों लगता है, यहीं हो
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तुम क्यों दिखाना चाहते हो ,
की तुम्हें मेरी परवाह है ,
होंटों पे मुस्कान सजाते हो पर दिल में तो आह है ,

क्या तुम जताना चाहते हो ,
की तुम्हें मुझसे प्यार है ,
अरे ! प्यार में कहो, कैसी जीत, कैसी हार है ?

शायद तुम बताना चाहते हो,
की तुम्हारी ही हर बात रहे?
पर जिद के चलते , कैसे खुशियों का साथ रहे ?

हाँ ! तुम सताना चाहते हो ,
गर तुमको इतना गरूर है ,
तो हमें भी तुम्हारी चुनौती मंज़ूर है !

Friday, July 25, 2008

स्थिर चंचला -Sthir chanchala

किसने बनाया है समाज के नियमों को? उन सीमाओं को जिनको हम बिना प्रश्न किए अपनाते हैं ? कौन है इन सबमर्यादाओं , इन ढ़ान्चो का रचयिता ? हम ही | जब हम ही इन्हे बनाते हैं , तब समय के साथ इन्हे बदलने काप्रयास हमें अवश्य करना चाहिए वरना रुका हुआ पानी और अचल समाज रुढिवादिता एवं ठहराव का सूचक होगा |

क्या सोच विधाता ने जब सृष्टि बनायी थी,
तेरी सखी बनने को मैं धरती पे आई थी ...

पर काल चला चाल देख मेरी वो हँसी,
मैं आज के, समाज के, जंजाल में फँसी ,

बदला मेरा स्वरुप , मेरे भाव भी ढले,
दूर हुए हम, हुक्म समय के चले ,

मेरी उड़ान बाँध के छोटा बना दिया,
मन्दिर में सजी मैं कभी कोठा बना दिया ...

पित्र भक्ति थी कभी, स्वामी का क्रोश था ,
वात्सल्य प्रेम मैं मुझे , कहाँ होश था |

सती बनी कभी, मुझे सीता कहा गया ,
मेरी ही वंदना को कविता कहा गया .....

पर अब थक चुकी हूँ इन आडम्बरों से मैं ,
ये नाम मात्र मिथ्या के स्वयंवरों से मैं ,

क्यों है नहीं स्वतंत्रता, चाहूँ जो वो करूँ ,
क्यों मर मरके मर्यादा की रेखा से मैं डरूं?

प्रकृति से विमुख रहूँ ? क्या प्रसन्न इश्वर होगा ?
रचयिता इन नियमों का , निश्चय ही एक नर होगा !

हे मानव ! कर उन्मुक्त मुझे , बाँध मुझे तू पाश में ,
ना हो ऐसा , हँसते हँसते , उड़ जाऊं आकाश में !

आपकी,
- अर्चना

Thursday, July 17, 2008

kavita kya hai?

"कविता क्या है ?"

एक सांचा रूप समाज का, एक ढांचा है ये आज का ,
कविता एक इतिहास है , देश , राष्ट्र , स्वराज का |
अकबर बाबर की गाथा ये रानी झाँसी की धार है ,
कविता है संस्कृति, यही साहित्य का श्रृंगार है |


कविता के ही पुण्य भूमि से प्रेम कभी उपजा था ,
और कभी ये मधु बाला के अधरों पर सजा था ,
रामायण की मर्यादा या महाभारत की आग हो ,
फीका है वह लेख जिसमे कविता की ना राग हो ,


हर कविता के मन्दिर में , एक मर्म की मूरत होती है ,
कविता लिखने की भी किंचित तीन ही सूरत होती हैं -
तीन कारणों से ही कविवर आते हैं ताव में ,
भाव में , अभाव में या शक्ति के प्रभाव में ...


कविता के बहाव का जो चाव रखते हैं ,
समंदर पे कागज़ की एक नाव रखते हैं ,
और फिर सोचते हैं , चलो पार कर लें ,
बस कवि ही ऐसा अद्भुत भाव रखते हैं |

Thursday, July 10, 2008

Prem ka frame

किसी ने कभी पूछा था की आख़िर प्रेम क्या है ? जितना भी मेरा इस पर ज्ञान है, उसे जोड़ कर कुछ लिख रही हूँकिसी त्रुटी पर भृकुटी कृपया तानें सहायता करें की आगे गलती हो
प्रेम का frame

प्रेम भावना है,
मात्र अधरों की छाप नही है
ऊर्जा है जीवन की, मात्र तन का ताप नही है|
प्रेम रूप-रंग-नाम या आकार नहीं है ,
जो चल है, मल है , छल है, वह प्यार नहीं है !

प्रेम विश्वास है , ये हृदय का एक जाप है ,
प्रयास साथ साथ में , ये उन्नति का नाप है ,
ये शिष्टता का तप है , मर्यादा ये आप है ,
सीमा जो पार कर जाए , वह प्रेम नही, पाप है !

तू ही मेरा आख़िर कर , तू ही मेरा पहला होता ,
सच्चाई को जान ये मेरा दिल जो नहीं दहला होता ,
मैं तेरी लैला होती और तू मेरा छैला होता ,
हम हँसते गाते साथ साथ , जो दिल तेरा मैला होता ,

A रचना

डेफिनिशन-
चल - अस्थायी
मल - dirty
छल - धोखा

Thursday, June 12, 2008

बूझो तो जानें ? पहेली नम्बर २ -


फिर क्यों कोई XXXX है ?
दिल खुला , कोई XX XX है |

Process- पहली पंक्ति के आखरी शब्द को तोड़ कर आपको दूसरी पंक्ति के दो शब्द बनाने हैं --
उदाहरण के लिए -
कैसी है ये दूरी हमारे दरमियाँ,
कैसे दिए आलू , किस दर मियां?

. शादी से मिलती है समधन ,
पर नही मिलता प्रेम सम धन ,


उत्तर है -
फिर क्यों कोई नाराज़ है ?
दिल खुला , कोई ना राज़ है |

Wednesday, June 11, 2008

बूझो तो जानें ?Paheli_1

राहुल उपाध्याय जी से प्रेरित होकर हमने भी कुछ पहेलियों का निर्माण किया है
चलिए पहला प्रस्तुत है --

शादी से मिलती है XXXX,
पर नही मिलता प्रेम XX XX ,


Process- पहली पंक्ति के आखरी शब्द को तोड़ कर आपको दूसरी पंक्ति के दो शब्द बनाने हैं --
उदाहरण के लिए -
कैसी है ये दूरी हमारे दरमियाँ,
कैसे दिए आलू , किस दर मियां?

पहेली १ का उत्तर है -
शादी से मिलती है समधन ,
पर नही मिलता प्रेम सम धन ,



Thursday, May 8, 2008

Naukri ki tokeri - नौकरी की टोकरी

करी करी नौकरी , नौ नौकरी करी ,
मरी मरी मैं मरी, जब भी नौकरी करी ,
दे दे के झूठे वादे , हरजाई मुख मोड़ गई ,
कभी मैंने छोडा उसे ,वो ही कभी छोड़ गई ,
ऊंची ऊंची डिग्रियों का , क्या मैं अब अचार करुँ ?
क्या बनेगा future मेरा, अब इसपे मैं विचार करुँ |

आई जो मैं पढ़ लिख के, BTech MBA कर के,
पहुँची अमरीका , कितने नयन में सपने धर के,
मेरा वो पहले इंटरव्यू , चक्रव्यू की चोटी ,
बिना वर्क परमिट के मैं उल्टे पाँव लौटी ,
मेरा अपराध घोर था, status मेरा H4 था ,

चार साल वनवास मैंने, जैसे तैसे भोगा,
आया जो ग्रीन कार्ड मैं झूमी, अब कुछ होगा ,
मैंने किए सारे तप, तब मिला एक startup,
मैंने कहा पैसे कम है, उसने कहा बस यही गम है ?
अगर तुम में दम है, काम किए जाओ , हम हैं ..


खैर , इरादा नेक था , मेरा वो पहले ब्रेक था,
मैंने की थी पूरी कोशिश, दिन रात एक कर डारी,
अब किस्मत को मैं क्या रोऊँ ,जो पाँव हो गया भारी,

बस, फिर क्या था ? फिर टूटी करीयर की डोरी,
बस गूंजी बच्चों की लोरी ,
दिन- साल- महीने गुज़र गए अब कोई करो उपाय ,
बच्चों के पालन के संग कौन नौकरी की जाए ?

सब R&D कर कर के, ये बात समझ है आई,
टीचर बन ने में ही अब तो होशियारी है भाई ,
बच्चों के ही संग जाना है, उनके ही संग आना,
दो पैसे तो घर में आयेंगे , हमने ख़ुद को ताना ,
पर टीचर बन ने को ,जो हुआ हमारा हाल ,
बज गए बाजा credentials में, लग गए पूरे दो साल ,
फिर मिली नौकरी पक्की , और चली समय की चक्की,

हुए बड़े कुछ बच्चे हाय , software फिर हमें बुलाये ,

बस एक नौकरी के पीछे सब लगा दिया है दम ,
लो outsource का दानव फिर ले आया है मातम ,

तंग गई में अमरीका में .बी.सी.दी (ABCD) बन कर ,
मैं ही आया , मैं ही बैरा , मैं ही कुक और ड्राईवर ,

उन बहनों के लिए ये संदेश मेरे पास है ,
जिनके दिलों में भी परदेस की ही आस है ,

जब आना इस ओर तो माँ या सासु माँ को ले आना ,
देखो बहना, हो पाये तो H4 पर मत आना ,
रखना तुम कंट्रोल अपने फॅमिली के प्लानिंग पर ,
वरना होगा रोना तुमको फूट फूट के धर के सर ,

कविता नहीं है, ये मेरे दिल की एक भडास है ,
पर इन आंसूओं में भी कहीं छुपी एक आस है ,

मैं हूँ नारी हिंद की और वक्त मेरा भी आएगा ,
जो निकल पड़ी मैं सर चढ़ के तो विश्व दंग रह जाएगा ,
तुम गाँठ बाँध लो सारा जग मेरी वाणी दोहराएगा ,
जिस किलकारी ने रोका था , अब वो ही हौसला बढायेगा !

America-अमरीका

मुकुराया देख हमने सोफे कुर्सी मेज़ को ,
भांति भांति के उपकरणों को , नई नवेली सेज को ,
हुए नहीं थे चार महीने भारत को छोडे हुए ,
घर से कोसों दूर , विदेशी सभ्यता ओढे हुए ,
उन दिनों भी मन के अन्दर कैसी वो आशाएं थीं ?
उमंगों की तरंगों की सतरंगी भाषाएँ थीं |

आए यहाँ तो रंगीली ये दुनिया हमको भा गई ,
ज्ञान विज्ञानं की इतनी प्रगति अपने दिल पर छा गई ,
लगे ठूंसने घर मैं अपने सामानों के भर ठेले ,
लगने लगे ठहाकों के मेरे घर पर भी मेले ,

अब तो इस धरती पर , इस हवा में तन रमने लगा ,
देख विदेशी चका-चौंध अपना भी मन जमने लगा ,

हो सकता है , अगली घर की यात्रा मन को भाये ,
पड़े रहें तब भी विदेशी चका-चौंध के ये साए ,

सम्भव हैं जाएँ हम भूल , निज देश की वह बंदगी,
धर्म भूलें कर्म भूलें, नज़र आए बस गन्दगी,

पर दिल के किसी कोने में अब भी एक आस है ,
घर भरा है किंतु मन में कमी का एहसास है ,

नहीं है तो बस नहीं है थपकियों का वो आँचल ,
खाने की मेज़ पे अपनों का वो कोलाहल ,
वो नाचने की धुन की मस्ती, गीतों का मधुर झंकार ,
वो प्यार वो तकरार , बच्चों सो जाओ की वो पुकार

अब तो अपने तेवर की करती है मिजाज़ पुर्सियाँ ,
ये कार ये टीवी ये मेज़ और ये कुर्सियाँ,

उन लोगों के लिए ये संदेश मेरे पास है ,
जिनके दिलों में भी परदेस की ही आस है

जब आना इस ओर तो थोडी माँ की खुशबू ले आना ,
बाँध सको तो गली मुहल्लों की आवाजें ले आना ,
संस्कृति इतनी लाना की आखरी वक्त तक साथ रहे ,
हो पाये तो मुट्ठी भर तुम देश प्रेम भी ले आना ,

मानों मेरी बात तभी तुम्हारा यहाँ दिल खिलेगा ,
क्योंकि इनमें से तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा,
कहीं नहीं मिलेगा , कभी नहीं मिलेगा |