Tuesday, November 1, 2011

मैं भाव के समुद्र हेतु शब्द ढूंढती हूँ

एक अंतहीन गर्भ का प्रारब्ध ढूँढती हूँ,
इस भाव के समुद्र हेतु शब्द ढूँढती हूँ ....

तोल -मोल के तो प्रेम बाध्य नहीं होता,
सोच से ही कार्य कभी साध्य नहीं होता,
कुल की रीत मान, जाप-तप करे कोई,
सत्य में, हर देव तो आराध्य नहीं होता,

मंथन है अंतर्मन, मैं निस्तब्ध ढूँढती हूँ,
इस भाव के समुद्र हेतु शब्द ढूँढती हूँ ....

भूमिका परे कलम जब बह पायेगी,
स्वयं से यथार्थ जब ये कह पायेगी,
होगी सच्ची कविता तो उस दिन मित्रों,
तोड़ परिधि व्यूह का जब ये रह पायेगी ...

शक्ति-भक्ति -मुक्ति का मैं अर्थ ढूँढती हूँ,
मैं भाव के समुद्र हेतु शब्द ढूंढती हूँ ....

आपकी,
अर्चना