किसी गुलसितां में चहकती थी हरदम ,
दो आंखों में उसकी महकती थी शबनम ,
सभी फूल पाती उसी पर फ़िदा थे ,
जो गूंजे सदा में उसी की सदा थे |
थी लाडो सभी की चहेती चकोर ,
कूदती भागती थी वो चारों ही ओर,
था मासूम दिल ऐसा , भोली सी सूरत ,
थी उसके लिए ये जहाँ खूबसूरत ,
एक दिन जो नज़र आसमां पर पड़ी ,
चाँद के चेहरे से उसकी आँखें लड़ी,
देखती ही रही कुछ भी बोले न वो ,
मुस्कुराये मगर राज़ खोले न वो ,
फिर कहा उसने ये बड़े दांव से,
चाँद ला दो मुझे आसमां गाँव से ,
सब हँसे चल रे पगली जिद नहीं ऐसे करते ,
कभी तारों को देखा ज़मीं पे उतरते,
अगर वो ज़मीं पे आ सकता नहीं ,
तो मैं क्यों न ख़ुद ही उस जाऊं वहीँ ,
यहीं तो दिखे है , उठाओ नज़र ,
हाथों से छूलूं , जो बढाऊं अगर ,
सब ये बोले जो दिखता है होता नहीं,
रेत के ढेर में पानी सोता नहीं ,
इश्क़ में कौन दुनिया में रोता नहीं ,
जो समझता है सपने पिरोता नहीं....
न मानी उडी उड़ चली वो चकोर ,
दोनों पंख खोले वो अम्बर की ओर ,
न दिन ही को देखा , न रातों को जाना,
न गर्मी न सर्दी, हवा का ठिकाना ,
जो टूटा बुलंदी से दम आखरी,
तो प्यासी वो आके ज़मीं पे गिरी ,
अपने उजडे पंखों को मींचे हुए
पहुँची प्यासी पोखर साँस खींचे हुए ,
देखा जो पानी में था चाँद एक,
आई जान वापस , दिया मौत फ़ेंक ,
गई वो समझ दुनिया दारी को आज ,
लो तुम भी सुनो उस चकोरी का राज़ ,
जो ख्वाइश करो तुम कभी चाँद की ,
अपने घर में पानी का घडा डालना ,
जो सच्ची हो चाहत झुके आसमां,
हमसफ़र दिल तुम ज़रा बड़ा पालना |
Friday, September 5, 2008
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10 comments:
बहुत सुंदर। क्या बात
फिर कहा उसने ये बड़े दांव से,
चाँद ला दो मुझे आसमां गाँव से ,
सब हँसे चल रे पगली जिद नहीं ऐसे करते ,
कभी तारों को देखा ज़मीं पे उतरते,
bahut khoobsurat hai aor aakhiri vaala bhi.....padhkar achha laga .likhti rahe....
पूरी रचना ही बहुत बेहतरीन!! बधाई.
निवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.
-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
बहुत सुंदर ..
सुभान अल्लाह। सुन्दर अति सुन्दर
बहुत ही सुंदर रचना बहुत दिनों बाद ऐसी रचना पढ़ने को मिली…आभार
अर्चना जी,
सब ये बोले जो दिखता है होता नहीं,
रेत के ढेर में पानी सोता नहीं ,
इश्क़ में कौन दुनिया में रोता नहीं ,
जो समझता है सपने पिरोता नहीं....
सुन्दर। बधाई।
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
जो सच्ची हो चाहत झुके आसमां,
हमसफ़र दिल तुम ज़रा बड़ा पालना |
मन्दिर तोडो, मस्जिद तोडो, इसमें क्या मुजायका हैं। दिल मत तोडो यार किसी का, यह घर खास खुदा का है।
अंतरजाल के संसार में हार्दिक अभिनन्दन.
आपकी रचनात्मक मेघा सराहनीय है.
हमारी शुभ कामनाएं.
कभी समय मिले तो इस तरफ भी आयें, और हमारी मुर्खता पर हंसें.
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/ http://saajha-sarokaar.blogspot.com/
न मानी उडी उड़ चली वो चकोर ,
दोनों पंख खोले वो अम्बर की ओर ,
न दिन ही को देखा , न रातों को जाना,
न गर्मी न सर्दी, हवा का ठिकाना
सटीक लिखा है आपका हार्दिक स्वागत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
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