किस राह पे हम आज यूँ ही चलने लगे हैं ?
आप ही के रंग में क्यूँ ढलने लगे हैं?
मोम का जिगर है तो बचें जी आग से,
हाय ! क्या करें जो आह से पिघलने लगे हैं ....
गरूर था कि आपको भी अपने सा बना देंगे,
अब ख़ुद को देख , हाथ अपने मलने लगे हैं ...
बताये ये कोई हमें , क्या ठीक , क्या ग़लत है?
फिर ज़िन्दगी के दांव पेंच चलने लगे हैं ....
जी चाहता है आज लिखें यक नया फ़साना ,
आ आ के लफ्ज़ कागजों पे टलने लगे हैं ......
चल फिर कोई ठोकर लगा, कर दे लहू लुहान,
ए ज़िन्दगी हम आज फिर संभलने लगे हैं ,
आपकी,
-अर्चना
Friday, September 26, 2008
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7 comments:
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने अर्चना जी...हर शेर बेहतरीन है...लिखती रहिये.
नीरज
दिल को छूती चन्द लाइने जिनको पढ कर सुकून मिला
वीनस केसरी
बहुत अच्छा लिखती है आप ...जारी रहिये ..
वाह क्या बात है। आप अगर ये वेरिफ़िकेशन क टैग हटा दें तो अच्छा रहेगा
बहुत अच्छी ग़ज़ल। बेहतरीन शेर
"nice gazal"
Regards
जी चाहता है आज लिखें यक नया फ़साना ,
आ आ के लफ्ज़ कागजों पे टलने लगे हैं ......
behatareen sundar lafzon se sazee bhavo se bharee dil me utarne waalee gazal badhaii
please visit my blog to enjoy kavita
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