Tuesday, August 3, 2010

एक दिन मैंने सोचा दुःख का कारण क्या है ,
और ह्रदय की पीड़ा का निवारण क्या है ?....
पाया मैंने सब की जड़ आसक्ति है.....
और हाँ ..... जो आ-सकती है, वो जा भी सकती है....
तो क्यूँ मानवता का हम अपमान करें.......
चलो, कभी तो खुद से हम पहचान करें.......(c)अर्चना

1 comment:

Avinash Agarwal said...

सार्थक रचना एवं अति सुन्दर विचार, आसकती तो मनुष्य का सहज गुण दोष स्वभाव है, इसे त्याग पाना एवं अनासकती की स्तिथि को प्राप्त हो जाना तो देवतुल्य है.