(सितम्बर ग्यारह के दर्दनाक हादसे को समर्पित एक गीत )-
आप इसकी विडियो यहाँ देख सकते हैं ---
http://www.youtube.com/watch?v=1YoM5R3u9ds
कल समाँ था जहाँ , अब हवा है वहां,
एक पल में गया , जो सदी में बना,
सिर्फ़ मंज़र नहीं , हौसला खो गया,
खौफ़्फ़ कैसे करुँ मैं बयाँ.......
जब कहीं एक गोली चली, एक माँ का दिल रोया,
नज़रें देखे अपनों का रास्ता , जाने किस ने क्या खोया ,
फूल ही फूल थे, जिनके घर में वहां , अब तो है दर्द की दास्तां,
कल चमन था जहाँ, अब चुभन है वहां ......
इन सियासी दम पेचोखम में पिसता आज है अमन-ए-वतन ,
कैसे रोकूँ कौमों के झगडे, कैसे बदलून , रंग-ए-चमन ,
चाह कर भी कुछ कर सकूं अब न मैं ,
डर है हर शक्श-ए-दिल दरमियाँ...
कल अमन था जहाँ, अब जलन है वहां...
आओ कह दें हम उस खुदा से, बस करे अब जंगों का खेल,
फिर से आए रिश्तों में नरमी, फिर बुलंद हो कौमों का मेल,
आओ मिल के हम सब करें ये दुआ, फिर कोई जंग-ए-गम आए ना.......
कल समां था जहाँ , अब हवा है वहां.....
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Sunday, October 19, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
"कल अमन था जहाँ, अब जलन है वहां..." बहुत अच्छी और सच्ची बात...वाह. बेहद असरदार रचना.
नीरज
कल समाँ था जहाँ , अब हवा है वहां,
एक पल में गया , जो सदी में बना,
सिर्फ़ मंज़र नहीं , हौसला खो गया,
खौफ़्फ़ कैसे करुँ मैं बयाँ.......
बहुत अच्छी बात.....
आओ कह दें हम उस खुदा से, बस करे अब जंगों का खेल,
फिर से आए रिश्तों में नरमी, फिर बुलंद हो कौमों का मेल,
आओ मिल के हम सब करें ये दुआ, फिर कोई जंग-ए-गम आए ना.......
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति . बधाई .
Post a Comment