Wednesday, November 5, 2008

मैं और अमरीका !

अमरीका में मैं दस साल से रह रही हूँ | अब ये भी घर सा लगने लगा है | ऐसा नहीं है की भारत को मैं भूली हूँ | आज भी भारत तन मन में बसता है लेकिन जिस देश से मुझे रोटी मिलती है , मेरे बच्चों को शिक्षा मिलती है , जहाँ मेरा परिवार बसता है, और जहाँ आज मैं गर्व से अपने देश और अपनी संस्कृति को represent करती हूँ, उस देश और उस धरती के प्रति भी मेरा कुछ कर्तव्य है | ये रिश्ता मुझे ज़ोर दे रहा है की मैं इसकी अस्मिता और आन के लिए , हमारे और इसके बीच प्यार और विश्वास को बनाए रखने के लिए आवाज़ दूँ | आशा है आप इसे सच्ची भावना से स्वीकार करेंगे-


जिसका खाया नमक, समय है, आज अदा वो हक करें,
अपनी जुबां और ईमां पर , ये जहाँ कभी न शक करे ,

सीखा है मैंने तो बस, वसुधैव कुटुंब को अपनाना,
तभी तो मैंने इस धरती को भी है अपना जाना,

मैं रहती जिस देश में भइया, उसपर सब कुछ वारूँगी,
वो न समझें चाहे अपना, मैं हिम्मत नहीं हारूंगी !

सोच समझ कर दूँगी मत मैं, मेरा चुना जो पायेगा,
रहे मेरा परिवार खुशी से, रामराज तब आएगा ,

भारत से मेरा नाता है , अमरीका भी प्यारा है,
दोनों देशों से ही अब तो जुड़ गया भाग्य हमारा है,

दोनों को ही घर मैं मानूं , आपका क्या ख्याल है ?
भारत है जो मायका मेरा, अमरीका ससुराल है !

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2 comments:

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

बहुत अच्छा िलखा है आपने । किवता में भाव की बहुत संुदर अिभव्यिक्त है । अपने ब्लाग पर मैने समसामियक मुद्दे पर एक लेख िलखा है । समय हो तो उसे भी पढे और अपनी राय भी दे-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

bhairav pharkya said...

हिन्द की बेटी है तू , जहाँ भी रहे , खुश रहे ,

खूब तरक्की क रे सदा , ओबामा रहे या बुश रहे ,

कायम रहे हौसला यही , दुआ क र ता बाबुल तेरा ,

मन में गंगा की निर्मल ता , गोद में ल व - कुश रहे !

----- भै र व फ र क्या
इन्दोर ( भारत )