Tuesday, December 23, 2008

कोई इंडिया से जब आए ...

कोई इंडिया से जब आए तो वो यही सोच कर आए,
कि मैं सपनों के देश में आ तो पाई रे ...

पर आकर इस प्लेस में यूँ लगता है.
डॉलर भी तो पेड़ पे नहीं आते हैं ,
मन तन्हा है, जीवन सूना फिर भी रे,
सुख दुःख में हम किस किस से मिल पाते हैं ?
मंहगा डे केयर है , जीरो पे शेएर है ,
कटे आधी तनखा टैक्स में ,लगता नहीं फेयर है !
बैक होम सब बोलें , तुम लाखों में डोलो,
सच्चाई हम जानें तुम हमको न बोलो !

हाँ ! इंडिया से नई मांग आई रे ....
कोई इंडिया से जब आए..

पर जीवन तो फिर भी चलता रहता है,
हमने यहीं पर हँसना गाना सीखा है,
बिना किसी बैसाखी के ख़ुद ही चलना ,
अब तो अपना देस ही अमरीका है !
उस माँ ने जनम दिया , इस माँ ने पाला है,
तो इस माँ का दर्जा उस माँ से आला है !

ए मेरे वतन के लोगों , ये बात जान लो हाँ !
रखना ऊंचा निज स्वाभिमान , तुम जग में रहो जहाँ ...

पूरब से आई कैसी, पुरवाई रे ....
कोई इंडिया से जब आए...

"कोई जाए तो ले आए, मेरी लाख दुआएं पाये " गीत कि धुन पर आधारित

इसकी विडियो आप यहाँ देख सकते हैं-
http://www.youtube.com/watch?v=yhyindjii

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8 comments:

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया प्रयास रहा !
घुघूतीबासूती

ताऊ रामपुरिया said...

ए मेरे वतन के लोगों , ये बात जान लो हाँ !
रखना ऊंचा निज स्वाभिमान , तुम जग में रहो जहाँ ...



लाजवाब !

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

bahut sundar

Prakash Badal said...

बढ़िया है वाह वाह!

bhairav pharkya said...

सुंदर रचना .......!

डे - केयर की महिमा न्यारी ,
भले लगे जेब पर भारी ,
न्यूक्लीयरर परिवारों के खेवनहार ये ,
सदा महकाएँ आपकी फुलवारी !

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

*****EXCELLENT

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

क्या बात है अर्चना! ्बहुत बढ़िया लिखा है।

आज कल हो कहाँ भई? न चिट्ठी न संदेस, न ही टेलिफ़ोन?

Debasis said...

good one..nevertheless, it sounds more as a frustrated outburst!!