Monday, December 21, 2009

प्रवासी हैं , कुबेर नहीं ,!

Watch video for this poem at-
http://www.youtube.com/watch?v=TFZb_tsV0oc

कई दिन पहले आया मुझको इंडिया से एक फोन,
मैंने पूछा बड़े प्यार से भाई तुम हो कौन,
उत्तर था साहित्य सम्मलेन करना एक है ,
मैंने कहा - आईडिया बड़ा ही नेक है ,
आया सवाल - क्या आप अपनी कोई रचना गा पाएँगी?
आप इसके हेतु भारत आ पाएँगी?

मारे ख़ुशी के कैसी कैसी भावनाएं जुड़ने लगी,
और बिना पंख ही मैं जैसे हवा में उड़ने लगी ,
लेकिन ज्यूँ ही ख्वाबों में प्लान मेरा बन गया,
रोटी, पानी, घर, बच्चों का आकर सवाल फिर तन गया,

मैं तब हारा हम के आगे, की मैंने उनसे बिनती,
है ज़िम्मेदारी, आयोजन में करें न मेरी गिनती,

कुछ चुप्पी के बाद श्रीमान डोले, और धीरे से बोले,
साहित्य की सेवा का मान कीजिये,
प्रवासी हैं , बढ़ चढ़ कर दान कीजिये,

इस पुनीत कार्य के ही योग सही,
आप नहीं आप का सहयोग सही !

ऐसी सोलिड मार्केटिंग के आगे मैं झुक गयी,
पर इस से पहले मैं कुछ भेजूं, मैं रुक गयी,

कितना, कैसे, क्यों, कहाँ , ज़ेहन में बात ये आई थी,
ज्यादा थोडा, जितना जोड़ा, सब मेहनत की कमाई थी,
आये इतने फोन की दर के मारे मैं गढ़ जाती थी,
लगता था हर बार किसी की उम्मीदें बढ़ जाती थी,

फिर मुझसे बन पाया जो भी मैंने भेजा उसके पास,
सोचा कुछ तो मदद मिलेगी, धन्यवाद की थी एक आस,
अपेक्षित से कम मिलने पर वह टूटा नहीं था,
निष्ठुर था, निर्भीक अति पर झूठा नहीं था,

करेले पे नीम का तेल ज्यूँ,
आया उसका अगला ईमेल यूं,

जी आपके इस चेक पे जो अंक है,
प्रवासी के नाम पे कलंक है,

सोचें, आपके प्रवास का क्या साख होता,
जो दान के इस चेक से रूपया लाख होता,

सुनकर मुझको हुआ अचम्भा, डॉलर की हम ढेर नहीं,
समझाऊँ तुमको कैसे, प्रवासी हैं , कुबेर नहीं ,

एक से पैंतालिस के दर का गाँव में मेरे चर्चा है,
वो न जानें, दर पैंतालिस का ही सारा खर्चा है,

टैक्स, हेल्थ, और इन्सुरांस का बोझ उठाना पड़ता है,
घर, गाडी, इंडिया टिकटों पर कितना लुटाना पड़ता है,

एकल, प्रथम, CRY और आशा, सब गायें भारत की भाषा,
दीन हीन, भुकमरी, गरीबी, लाचारी का भव्य तमाशा,
और आप सब देकर डॉलर,
ऊंची करते अपनी कॉलर,

शिक्षा अपने देश में पाकर,
बसे मगर परदेस में आकर,
दिलों में जलन, आँखों में नमी है,
हाँ यहाँ भी कमी है, यहाँ भी कमी है ,

अब मैं भी नींद से जागूंगी,
और भारत से कुछ मांगूंगी,

स्वप्न पूर्ण निशा दो, जीवन में दिशा दो,
दो मीठे बोल दो, प्यार ही में तोल दो,
प्रवासी का स्थान से ही मान नहीं हो,
अमरीका ही मेरी पहचान नहीं हो,
भाग्य ने देश बहार धकेला है,
यहाँ हर प्रवासी कितना अकेला है,
अब इस दीन को भी जीवन में प्यार चाहिए,
अपनों के बाहों का हार चाहिए,
सबको NRI लगता मीठा ढोकला है,
पर भीतर से प्रवासी सचमुच में खोखला है,
पूरा ही खोखला है ..........

12 comments:

Alpana Verma said...

सोचें, आपके प्रवास का क्या साख होता,
जो दान के इस चेक से रूपया लाख होता,

सुनकर मुझको हुआ अचम्भा, डॉलर की हम ढेर नहीं,
समझाऊँ तुमको कैसे, प्रवासी हैं , कुबेर नहीं ,

waah! waah !Archana kya khoob likha hai!
bahut badhiya kavita hai.

Udan Tashtari said...

Itna sachcha sachcha--
Itna khara khara..
Ab koun bulayega Bharat me program karne..
Jab aap hi lagengi phone se darne.



-Bahur sateek!! Behtareen.



-Mera computer kharab ho gaya hai, atah Roman me likhne ko badhya hua. Mafi chahunga.

अनूप भार्गव said...

काफी सच्चाई है कविता में , स्वयं कई ऐसे अनुभवों से गुज़र चुका हूँ ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सही बात है कुबेर तो नहीं ही हैं पर कुछ-कुछ हैं जो कुबेरों से मटकते ज़रूर हैं

श्यामल सुमन said...

व्यंग्य-बाण के साथ में सच्चा है एहसास।
सहज ढ़ंग से अर्चना बातें कहतीं खास।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman. blogspot. com

राजीव तनेजा said...

सोचें, आपके प्रवास का क्या साख होता,
जो दान के इस चेक से रूपया लाख होता,
सुनकर मुझको हुआ अचम्भा, डॉलर की हम ढेर नहीं,
समझाऊँ तुमको कैसे, प्रवासी हैं , कुबेर नहीं...


बहुत ही तीखे एवं करारे शब्दों में आपने अपनी बात कह दी...बहुत बढिया..

निर्मला कपिला said...

वाह आप ने तो भिगो भिगो कर शब्द मारे हैं सही कहा आजकल साहित्य के नाम पर हर कोई अपना लोटा लिये तैयार दिखता है । धन्यवाद

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढ़िया व सटीक रचना है.....

सुनकर मुझको हुआ अचम्भा, डॉलर की हम ढेर नहीं,
समझाऊँ तुमको कैसे, प्रवासी हैं , कुबेर नहीं ,

My Blog said...

उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।

छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना ।

उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना ।

वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना ।

रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।

तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना ।

हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।

मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना ।

मरना जीना बस में कहाँ है अपने ,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना ।

दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना ।

सूरज तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो में ' दीप ' को जला कर रखना EU NAO ENTENDO ESSAS LETRINHAS ,BUT I LOVE THATS HOME BECAUSE HAVE MUCH VIDEOS BEAUTIFUL

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही तीखे एवं करारे शब्दों में आपने अपनी बात कह दी...बहुत बढिया..

Unknown said...

sach mein .....

kuch lines mein hi poora NRI ka dard aa gyaa ..

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

यथार्थ और साफ़गोई के लिये बधाई। सुन्दर उद्गार।