ऐसा होता है ना , कभी कभी कोई कोई दिन बहुत भारी होता है |लगता है , आज ही सब एक साथ कैसे हुआ | परकहते हैं जो होता है अच्छा ही होता है | आज मन थोड़ा उदास था | पता नहीं शायद आपको कविता थोडी confused लगेगी | ऐसा हो तो क्षमा कीजियेगा | कल शायद एक नया दिन और एक नई कविता हो !
सुबह सुबह जो निकली घर से सब उजला - उजला था ,
हंसती हंसती खोई खोई , मन भी भला - भला था,
रात गई गई सी थी , अँधेरा गया गया था ,
किरण नई नई सी थी और सूरज नया नया था ,
किसी किसी दिन भाग्य उदित हो , और कभी उतरे है ,
उंच नीच के खेल , खेल ये मानव से परे है |
यूँ तो मैं कहती रहती हूँ , आज दिन था सुनने का ,
मिलना था , सो मिल गया, इनाम था सपना बुनने का |
जीवन के हर पर्व से,
मिलती थी मैं गर्व से ,
चार स्तम्भ के बूते पर मैंने हर युद्ध है जीता ,
मेरा परिवार, मेरी नौकरी , मेरे मित्र और मेरी कविता ,
यही चार मेरे जग थे , इन सबके महत्व अलग थे ,
पर आज जाने क्यों इनमे से मुझे चुनना पड़ा ,
आज मुझे अपनों से, अपनों के लिए, सुनना पड़ा |
माँ, बहु , पत्नी के तौर से , मुझे सब बातें देखनी थीं ,
और मेरे समय पर आधिपत्य करे,मेरी कविता और मेरी लेखनी थी !
सारे घर को प्रेम से मेरे , जाने कैसा बैर था |
पर प्यार मेरा बच ही जाता , खुदा का खैर था ,
ये बोले -अपने करियर पर तुम कोशिश तो चंद करो ,
छोडो ये शो और सम्मलेन , अब कविता लिखना बंद करो ,
सासु माँ की बानी - बहुरानी , दिन - रात - समय का मान करो ,
अपने शौक तो रहने दो , अब बस बच्चों पे ध्यान करो ,
आज हमारे परम मित्र ने , हमारी ही परीक्षा ले ली !
और नौकरी ने भी हमसे फिर आँख मिचौली है खेली ,
पलकों पर बैठें हैं मोती , तैयार हैं बाहर आने को ,
पर मैं डट गई हूं अब तो , अपनी मंजिल पाने को,
हर मोती, हर मित्र, सब कुछ , जीवन का बस एक पल है ,
पर जो रहता है साथ हमेशा , वो आने वाला कल है !
कल सुबह सुबह जो निकलूंगी मैं , सब उजला - उजला होगा ,
हंसती हंसती खोई खोई , मन भी भला - भला होगा ,
रात गई गई होगी , अँधेरा गया गया होगा ,
किरण नई नई होगी और सूरज नया नया होगा ............ ......... .........
Thursday, July 31, 2008
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