एक सांचा रूप समाज का, एक ढांचा है ये आज का ,
कविता एक इतिहास है , देश , राष्ट्र , स्वराज का |
अकबर बाबर की गाथा ये रानी झाँसी की धार है ,
कविता है संस्कृति, यही साहित्य का श्रृंगार है |
कविता के ही पुण्य भूमि से प्रेम कभी उपजा था ,
और कभी ये मधु बाला के अधरों पर सजा था ,
रामायण की मर्यादा या महाभारत की आग हो ,
फीका है वह लेख जिसमे कविता की ना राग हो ,
हर कविता के मन्दिर में , एक मर्म की मूरत होती है ,
कविता लिखने की भी किंचित तीन ही सूरत होती हैं -
तीन कारणों से ही कविवर आते हैं ताव में ,
भाव में , अभाव में या शक्ति के प्रभाव में ...
कविता के बहाव का जो चाव रखते हैं ,
समंदर पे कागज़ की एक नाव रखते हैं ,
और फिर सोचते हैं , चलो पार कर लें ,
बस कवि ही ऐसा अद्भुत भाव रखते हैं |
4 comments:
कविता क्या है,बहुत सशक्त रचना है अर्चना जी।मेरी बधाई स्वीकार करें।
माधव नागदा
अति उत्तम कविता
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