थे जबसे वो शौक शायराने हमें ,
थी ख्वाइश की दुनिया पहचाने हमें ,
गीतों को मेरे भी दुनिया सुने ,
अंधेरों से उठके उजाले बुने ,
थी वो आस मुझमें जो माने ना हार ,
जो गिर के भी बोले लो फिर एक बार ,
वो बचपना लिए बढ़ चले हम तो आगे ,
जाने कितने ही अरमां थे दिल में ये जागे ,
कोशिशें इतनी जाया हुई ये न पूछो ,
चौखट पे सभीके मायूसी ही पायी ,
फिर ख़ुद को मनाया यही सोच कर ,
ज़रा धीरज रखो शुभ घड़ी देगा साईं ,
कोई चाचा या मामा या ताया नहीं ,
खींचने हमको आगे कोई आया नहीं,
ये खुदा की है रहमत कलम बोल उठी ,
क्या कसर इस ज़माने ने ढाया नहीं ....
है गर आग मुझमे कभी तो जलेगी ,
तपस्या मेरी ये कभी तो फलेगी ...
यही गम लिए चले जा रहे थे ,
किसी ने गली में पुकारा हमें ,
मुड के देखा वो चेहरा , बड़ा ही सुनहरा ,
पुछा हमने क्योंजी, क्यों पुकारा हमें ?
तुमको देना था कुछ , यूँ तो कुछ भी नहीं ,
दिल से मेरे एक नन्हा शुक्रिया ,
जब मैं हरा था जग से , था हरसू अँधेरा ,
गीतों ने तेरे था उजाला किया !
बस इतना ही कह चल दिया वो कहीं ,
पर दिल पर मेरे जैसे बिजली गिरी ,
न मालूम था होगा इतना असर ,
है कलम में वो दम मेरी बुद्धि फिरि ,
न छपे मेरे गीत कागजों पे तो क्या है ?
इंसानी दिलों पर तो पड़ती है छाप ,
अब बेहतर है क्या , ये इंसा या कागज़ ,
चलिए हमको अब ही बताएं ये आप !
Thursday, May 8, 2008
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