परीक्षा
( मुशी प्रेमचंद की कहानी 'परीक्षा' पर आधारित )
जब सुजानगढ़ का दीवान उमर से थका चला था ,
सोचा की मैं स्वयं चुनूं , दीवान नया भला सा ,
हुई घोषणा , पूर्ण राज्य में होगा चुनाव दीवान का,
परिचय होगा, सब गुनियों के ,आन -बाण और शान का,
हर कोने से आए सज्जन लेकर अपने रंग ,
सबका अपना अलग रवैया ,अपना अपना ढंग ,
कोई खेल में अव्वल था , कोई सुर में उस्ताद ,
कोई ज्ञान का सागर था कोई गुण से आबाद ,
मुश्किल यूँ था चुन ना उनमें ज्यों पर्वत से जीरा ,
बूढा जौहरी ढूंढ रहा था पर मोती में हीरा !
एक दिवस सब युवा जनों ने सोचा खेलें खेल ,
सम्भव हो जाए उसी से आकांक्षा से मेल,
हुई आरम्भ प्रतियोगिता फिर हार जीत के साए,
अंत में थक हार कर सब अपने घर को आए,
रस्ते में एक बूढा किसान बिनती करता था सबसे ,
गाड़ी उसकी एक दलदल में फंसी हुई थी कबसे ...
रुके कोई क्यों ऐसे पल में थके हुए थे सब ही ,
लगता था आराम मिले सो जायें बस अब ही,
बैठ गया वो बूढा पकड़े अपना सर हाथों में ,
ऐसे में देखा उसको एक लड़के ने बातों में ,
जाना जो उसकी मुश्किल बोला की मैं आता हूँ ,
लगी पाँव में चोट है मेरे साथी को लाता हूँ |
जब कोई न आया , वो बोला हंसके तब ,
हम दोनों को ही मिलके करना पड़ेगा अब,
आधी रात गए वो लड़का उस बूढे के साथ ,
खींच रहा था गाड़ी उसकी कसके दोनों हाथ ,
भवन जो पहुँचा सोने को , बीती रात थी सारी,
सब सज्जन निकले थे सुन ने निर्णय की तैयारी..
दौड़ा पहुँचा जो कक्ष में निर्णय होना था तब ही ,
दिल को थामे बैठे लोग आशावादी थे सब ही,
चुना गया वो लड़का जो बैठा सबसे पीछे ,
करने लगे प्रश्न लोग , अपनी मुट्ठी भींचे ,
आया वो बूढा किसान तब, अरे वो ही दीवान है !
बोला उसने कठिन क्षणों में इंसा की पहचान है ...
जिस मानव ने औरों के दुःख को अपना जाना है ,
उसी वीर हृदय को हमने परिषद् में लाना है ,
चाहे कितने गुण हों किसी में , वृथा हैं सारे मान ,
करे जो न दीन दुखी और मेहनत का सम्मान !
Thursday, May 8, 2008
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1 comment:
स्वयं चुनूं , दीवान नया भला सा ,
sardar ne apne aap ne diwan chunne ka nishaye nahi kiya par maharaj ne yeh shart raki thi. aur wah isi aagya ki purthi kar raha tha.......
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