(सितम्बर ग्यारह के दर्दनाक हादसे को समर्पित एक गीत )
कल समाँ था जहाँ , अब हवा है वहां,
एक पल में गया , जो सदी में बना,
सिर्फ़ मंज़र नहीं , हौसला खो गया,
खौफ़्फ़ कैसे करुँ मैं बयाँ?
इन सियासी दम पेचोखम में पिसता आज है अमन-ऐ-वतन ,
कैसे रोकूँ कौमों के झगडे, कैसे बदलून , रंग-ऐ-चमन ,
चाह कर भी कुछ कर सकूं अब न मैं ,
डर है हर शक्श-ऐ-दिल दरमियाँ...
कल अमन था जहाँ, अब जलन है वहां...
जब कहीं एक गोली चली, एक माँ का दिल रोया,
नज़रें देखे अपनों का रास्ता , जाने किस ने क्या खोया ,
फूल ही फूल थे, जिनके घर में वहां , अब तो है दर्द की दास्तां,
कल चमन था जहाँ, अब चुभन है वहां ......
आओ कह दें हम उस खुदा से, बस करे अब जंगों का खेल,
फिर से आए रिश्तों में नरमी, फिर बुलंद हो कौमों का मेल,
आओ मिल के हम सब करें ये दुआ, फिर कोई जंग-ऐ-गम आए ना.......
कल समां था जहाँ , अब हवा है वहां.....
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Thursday, May 8, 2008
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