Thursday, May 8, 2008

Hind-Pak - हिंद-पाक

हिंद-पाक
जब बँटा मेरा था देश कभी ,
थे बड़े उदास ,हैरान सभी |
हर दिल का टुकडा लाख हुआ ,
कुछ हिंद हुआ , कुछ पाक हुआ ...

जिसके हिस्से जो भी आया ,
उसपर था बिछडों का साया,
क्या खूब सियासी शातिर थे ,
मज़हबी दांव में माहिर थे ,
उनको तो सत्ता पाना था ,
और अपनों को लड़वाना था ,

फिर हुआ , हुआ कैसा जूनून ,
क्यों बहा हर गली खून -खून ...
क्यों लाल रंग हर गाँव सना ,
कश्मीर दर्द का तनाव बना ...

सारी दुनिया अफ़सोस कहे ,
दो दुश्मन पास-पड़ोस रहे ,
वे दुश्मन जो भाई थे पर ,
रिश्ता टूटा जब छूटा घर ,


पर कुदरत की देखो माया ,
भूकंप भी ये कहाँ आया ,
दोनों देशों के बीचोंबीच ,
हम जिसे रहे लहू से सींच ,

कुदरत ने है आगाह किया ,
बन्दे ग़लत है राह लिया,
जा सुधर , बना ले रिश्ता फिर ,
ख़ुद जाए नज़रों से गिर ,

हो अच्छा गर फिर एक बार ,
बंधे दो देशों में प्यार ,
और अगर हम बन जाएँ एक,
दिल से सारे शिकवे फ़ेंक ,
तो सोचो कैसा होगा रंग,
कभी जंग हो अपनों के संग ,

कभी शहद बने , कभी नीम बने ,
क्या सही क्रिकेट की टीम बने ,
हों राम वहीँ, रहमान वहीँ ,
हो उनका अपमान कहीं ,

सब पंडित, मुल्ला, पीर बनें ,
हम सबका ही कश्मीर बने ,

गर एक कभी हम बन पायें ,
साड़ी दुनिया पे छा जाएँ ,
बस बात नज़रिए की है एक,
तू कोशिश कर के तो देख !

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