Wednesday, August 6, 2008

अपने तो अपने होते हैं !

परिवार एक आस्था है , एक विश्वास है जो ये दिलासा देता है की कहीं भी, कभी भी , जीवन के किसी भी मोड़ परकोई है , कोई साथ है | अब वो माँ का प्यार हो या पिता का दुलार, पति का विश्वास हो या बच्चों से घर की सफाई कासत्यानाश ! चाहें हम बर्तनों की तरह खनकें , पर उस खनक में भी एक संगीत है , कभी सुना है आपने ?

नव सूर्य की आरुशी से शनि का टूटा कोप है ,
जग जगमग उजियारा है , जीवन में नई hope है |

अपनों के ही कुछ बातों से मुझको दुःख पहुँचा था ,
पर पहचाना है, उस ताड़ना का , उद्द्येश्य ऊंचा था !

वो कहते नहीं कभी मुंह से , नहीं करते प्रेम प्रदर्शन हैं ,
पर ये जान चुकी हूँ मैं, उनका सब कुछ मुझ पर अर्पण हैं !

अपनों के ही सपनों से हमको मिलता आकार है ,
मम्मी पापा से बढ़कर मेरे सास-ससुर का प्यार है ,

आज उनके वंश की अभिन्न कड़ी हो गई हूँ मैं ,
और छोटी छोटी बातों से अब बड़ी हो गई हूँ मैं,

आज मिट गयीं है सारी वहमें, प्रेम का उगता बीज है ,
घर में फिर खुशियाँ आयीं , आज 'हरियाली' तीज है !

आपकी,
-अर्चना

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