Friday, August 15, 2008
naya naya- नया नया !
जहाँ-ऐ-आरजू में दिल ये गया गया है ,
ये आशिकी का फन भी ज़रा नया नया है...
हैरान हूँ ख़ुद में देख अपने आईने का रंग ,
ऐसे तो कभी थे न मेरे ख्वाईशों के ढंग,
कहते हैं लोग मुझसे कुछ है ज़रूर आज,
खामोश जुबां पर निगाह बयां बयां है ....
नहीं उम्मीद न ही तेरा इंतज़ार है ,
संजीदगी में है या शौकिया ही प्यार है?
खिला है कैसा फूल पत्थरों के गाँव में ,
खंजर तो कई खाए , तीर मयां मयां है !
मेरे खुदा शुकर है तेरा रहम-ओ-करम है ,
गायें तेरे ही गीत जो हाथों में कलम है,
मिले हमें तारीफ़ तेरे बोल जो कहें ,
शर्मिंदगी से दिल ये मेरा स्याह स्याह है....
ये आशिकी का फन भी ज़रा नया नया है.......
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment