Friday, August 15, 2008

Phursat - फुर्सत

फुर्सत मिल जाए तुम्हें जो कहीं ,
पूछना इतना नाज़ करती वो क्यों है?
जो वक्त--शिकायत का ले वो बहाना ,
उससे कहना दिल में अरमाँ वो भरती ही क्यों है?

फुर्सत ही ने मुझसे कभी ये कहा था,
की भूले से दिल ये लगाना नहीं ,
मिलेगी फुर्सत जो दिल को लगाया ,
मैं मुहब्बत में थी मैंने माना नहीं...

अब मिला जो सिला दिल लगाने का मुझको ,
मैं रो रो के ढूढूं वो फुर्सत के पल,
हर वक्त एक साया , है नज़रों पे छाया ,
मशरूफ है दिल मेरा आजकल !

No comments: