फुर्सत मिल जाए तुम्हें जो कहीं ,
पूछना इतना नाज़ करती वो क्यों है?
जो वक्त-ऐ-शिकायत का ले वो बहाना ,
उससे कहना दिल में अरमाँ वो भरती ही क्यों है?
फुर्सत ही ने मुझसे कभी ये कहा था,
की भूले से दिल ये लगाना नहीं ,
मिलेगी न फुर्सत जो दिल को लगाया ,
मैं मुहब्बत में थी मैंने माना नहीं...
अब मिला जो सिला दिल लगाने का मुझको ,
मैं रो रो के ढूढूं वो फुर्सत के पल,
हर वक्त एक साया , है नज़रों पे छाया ,
मशरूफ है दिल मेरा आजकल !
Friday, August 15, 2008
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