कलम नहीं अब तो मेरी रूह बोलती है ,
दीवानगी से अपने आशिकी को तोलती है !
नहीं ख़बर थी हमको महंगा था इतना सौदा ,
ये दिलागी सुकून-ऐ-दिल को मोल्ती है ...
दिल करे दुआ, तुझे भी हो मुहब्बत ,
सुनते हैं , गली गली तेरी नज़रें डोलती है ?
चाहत जो तुझको आए ,तो इस कदर सताए ,
सिलवट वो चादरों पे जैसे राज़ खोलती है...
मिल जाए तुखो मंजिल फिर भी दुआ करेंगे,
इस दर्द-ऐ-गम में दिल तेरी हँसी टटोलती है !
Saturday, August 16, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment